...

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ओह.... ये लम्हे ।
मेरी दो दुनिया है प्रिया।
एक जिसमे जी रहा हूं.......
और एक जिसमे जीना चाहता था।
लोग कहते हैं की मैं अब पहले जैसा
बहुत खूश रहने लगा हूं, और......
और सबकुछ भुल भी चुका हूं।
लेकिन मुझे लगता है की
शायद मेरे चेहरे ने भी धीरे-धीरे मेरी तरह,
दुनिया वालों के मिजाज के साथ
रहना सीख लिया है।
हा! शायद सचमुच अब मैं खूश हूं
लेकिन जीवन के ईस लम्बे सफर में
कभी-कभी जब मैं खामोशी के साथ
अपने रास्ते चलता रहता हूं,
मेरे...