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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।243
मैं असतिव हूं और मैं ही हूं स्त्रीत्व भी तो मैं ही हूं, मैं नायिका व मैं ही
खलनायिका हूं, मैं फूलन बाली हूं और वैदिका भी हूं,मेरा अस्तित्व ही मेरी स्त्रीत्व का सार व आसीमता है,बिन मेरे अस्तित्व उसका स्त्रीत्व कहा पूरा है, मैं ही पहले नपुंसकीय आहुतिका हुई और सून्यनिका फिर...