कर्ण: दानवीर या स्वार्थी योद्धा?
कर्ण, महाभारत के एक प्रमुख चरित्र, जटिल और विवादास्पद व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। उनके जीवन में कई मिथक और भ्रांतियाँ फैली हुई हैं, जिनका सही विश्लेषण आवश्यक है। कर्ण का जन्म कुंती के गर्भ से हुआ था, जो उस समय अविवाहित थीं। समाज के डर से कुंती ने अपने पुत्र को त्याग दिया, और एक सूत, अधिरथ, और उनकी पत्नी राधा ने कर्ण को अपनाया और पाला। कर्ण ने अपने पालक माता-पिता से भरपूर स्नेह और समर्थन पाया और हमेशा उनके प्रति निष्ठावान रहे।
कर्ण ने धनुर्विद्या में रुचि रखते हुए गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ पांडव और कौरव भी थे। यह मिथक है कि द्रोणाचार्य ने कर्ण को शिक्षा देने से इनकार किया था। कर्ण ने अर्जुन, भीम और अन्य पांडवों के साथ शिक्षा ग्रहण की थी। हालांकि, द्रोणाचार्य ने केवल अर्जुन और अश्वत्थामा को ही ब्रह्मास्त्र की शिक्षा दी थी। यह निर्णय कर्ण की अयोग्यता के कारण लिया गया था, न कि जातिगत भेदभाव के कारण।
कर्ण के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब दुर्योधन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अंगदेश का राजा बना दिया। कर्ण ने दुर्योधन के साथ मित्रता की और उनके प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित की। दुर्योधन ने कर्ण को सामाजिक प्रतिष्ठा दी, और इसके बदले में कर्ण ने हमेशा दुर्योधन का साथ दिया। यह संबंध केवल मित्रता का नहीं था, बल्कि इसमें शक्ति और सत्ता की भी भूमिका थी।
कर्ण की प्रतिष्ठा और सम्मान का सबसे बड़ा मिथक यह है कि द्रौपदी ने उन्हें अपमानित किया था। स्वयंवर में, द्रौपदी ने कर्ण को सूत पुत्र कहकर उनकी अवहेलना की, ऐसा कहा जाता है। परंतु, वास्तविकता यह है कि स्वयंवर के नियमों के अनुसार, केवल उन्हीं को भाग लेने की अनुमति थी जो पात्र थे। कर्ण धनुष की प्रत्यंचा नहीं चढ़ा पाए और इस कारण से द्रौपदी ने कहा कि वह सूत पुत्र से विवाह नहीं करेगी। यह एक सामाजिक नियम था, न...
कर्ण ने धनुर्विद्या में रुचि रखते हुए गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम में शिक्षा प्राप्त की, जहाँ पांडव और कौरव भी थे। यह मिथक है कि द्रोणाचार्य ने कर्ण को शिक्षा देने से इनकार किया था। कर्ण ने अर्जुन, भीम और अन्य पांडवों के साथ शिक्षा ग्रहण की थी। हालांकि, द्रोणाचार्य ने केवल अर्जुन और अश्वत्थामा को ही ब्रह्मास्त्र की शिक्षा दी थी। यह निर्णय कर्ण की अयोग्यता के कारण लिया गया था, न कि जातिगत भेदभाव के कारण।
कर्ण के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब दुर्योधन ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अंगदेश का राजा बना दिया। कर्ण ने दुर्योधन के साथ मित्रता की और उनके प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित की। दुर्योधन ने कर्ण को सामाजिक प्रतिष्ठा दी, और इसके बदले में कर्ण ने हमेशा दुर्योधन का साथ दिया। यह संबंध केवल मित्रता का नहीं था, बल्कि इसमें शक्ति और सत्ता की भी भूमिका थी।
कर्ण की प्रतिष्ठा और सम्मान का सबसे बड़ा मिथक यह है कि द्रौपदी ने उन्हें अपमानित किया था। स्वयंवर में, द्रौपदी ने कर्ण को सूत पुत्र कहकर उनकी अवहेलना की, ऐसा कहा जाता है। परंतु, वास्तविकता यह है कि स्वयंवर के नियमों के अनुसार, केवल उन्हीं को भाग लेने की अनुमति थी जो पात्र थे। कर्ण धनुष की प्रत्यंचा नहीं चढ़ा पाए और इस कारण से द्रौपदी ने कहा कि वह सूत पुत्र से विवाह नहीं करेगी। यह एक सामाजिक नियम था, न...