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नष्ट होती भारतीय परंपराएँ
इस विषय के बारे में सोचो, तो शायद सोच का कहीं भी विराम ही ना मिले। अपनी पुरानी परंपराओं और सभ्यताओं के बारे में सोचो तो, कितनी ही परंपराएँ पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है। हर पीढ़ी का यह दायित्व है कि वह अपने पूर्वजों से जो भी सभ्यताएँ और संस्कृति उन्हें प्राप्त हुई है, वह उन्हें सहेज कर अपने आने वाली पीढ़ी को सौंपें। ताकि इसी तरह इन परंपराओं और सभ्यताओं को सहेज कर हम इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाते जाएँ और अपनी संस्कृति का विकास करें। लेकिन क्या यह सच में हो पा रहा है?
इस विषय में सोचो, तो शायद उत्तर मिलता है नहीं। आपने लगभग हम भारतीयों को देखा होगा कि पढ़े लिखे वर्ग में अधिकतर लोग अपने आप को सभ्य समाज का हिस्सा मानते हैं। अगर इस संदर्भ में सोचा जाए, तो क्या यह लगता है पढ़े लिखे वर्ग को आज हम सभ्य भी समझ सकते हैं। शायद सभी का नजरिया इस संदर्भ में अलग हो। मेरे हिसाब से तो कतई नहीं। आज पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव हम भारतीयों पर इतना ज्यादा पड़ रहा है कि अधिकतर भारतीय मॉडर्न बनने के चक्कर में अपनी संस्कृति और सभ्यता को ताक पर रखकर उसका मजाक बना रहे हैं। अभी हाल की ही एक घटना है जहाँ मैंने देखा कि एक ऐसा परिवार जहाँ पर घर के सभी सदस्य अपनी परंपरा और सभ्यता से जुड़े हुए थे, अपना वह अस्तित्व खोते जा रहे हैं। घर के बुजुर्गों के न रहने पर अपनी मनमानी किए जा रहे हैं। पाश्चात्य सभ्यता का इतना असर देखने को मिला कि मैं हैरान हो गई। घर में किसी को किसी की कोई परवाह नहीं। उसी घर का एक लड़का जो किसी लड़की के साथ लिव इन रिलेशन में रह रहा है। ऐसा मुझे लगता है, उसे
लाख समझाने पर भी, कोई फर्क नहीं पड़ रहा। लड़की लगभग उससे आधी उम्र की है। क्या उसे लड़की के परिवार को भी कोई फर्क नहीं पड़ता। उसने अपनी लड़की को ऐसे कैसे छोड़ा है? यह देखकर तो ऐसा लगता है की परंपराओं और संस्कृति का हनन होते लोग देख रहे हैं, और यह पढ़ा लिखा वर्ग उसका सपोर्ट कर रहा है। पर क्या यह उचित है। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या यही सीखा रहे हैं? आजकल समाज में भी लगभग ऐसे लोग हैं जो किसी को गलत करता हुआ देखकर तमाशबिन बने हुए हैं। वाहवाही में लगे हैं। तारीफ कर रहे हैं। क्या सचमुच पढ़े लिखे वर्ग का पतन होता जा रहा है। ठीक इसकी विपरीत अगर हम रशियन , चीनी लोगों को देखें जो अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहना पसंद करते हैं। हम में ऐसी क्या-क्या कमियाँ है? क्यों हमारी परंपराओं का नाश हो रहा है? आखिर इसका जिम्मेदार कौन है? शायद हम ही। परंतु मुझे लगता है इसका अंत होना चाहिए। वरना हम अपनी मिट्टी अपनी धरती से कैसे जुड़े रहेंगे। अपनी संस्कृति और सभ्यता को कैसे बचाएंगे? सोचिए..सोचिए और सोचिए।