...

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शरारतों की यादें
यूँ तो है, यहाँ कई महाविद्यालय,
उनमे से एक है, भगवान सिंह महाविद्यालय
अभी तो यहाँ मेरे कुछ यादगार ही पल बीते हैं,
कि बुहान वाले आ गये हैं,
जो जाने का नाम ही नहीं ले रहे है |
अब पता नहीं ये कब जाएगे,
कब हम मित्रों से मिल पाएगें ?
इतने दिनों में बेशक़ सबको, सबकी याद आई होगी |
यहाँ कुछ लोगों से मिलना, सबकी याद को ताज़ा करना ||
कॉलेज में श्‍वेता मेम से हिंदी का पढ़ना और
क्लास में शोर होने पर “हद हो गई बदतमीजी की कहना” |
मनीष सर से बायो का पढ़ना और
क्लास के बाहर उनकी मोज लेना |
सतीष सर का लाल कलम का चलाना और
कमलेश सर का हाथ घुमा...