...

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स्वयं की तलाश
आज पुरे तीन महीने बाद मै उससे मिली थी
पर उससे मिलने की मुझे ज़रा भी उत्सुकता नहीं थी
ना उसका नाम सुनकर मेरे दिल की धड़कन तेज हुई थी
और ना उसके बारे में सोचकर मेरे लबों पर हँसी थी
ना ही मेरी आँखे उसे सोचकर शर्म से झुकी थी
ऐसा लग रहा था जैसे मेरे दिल ने दिल निकाल कर कहीं फ़ेंक दिया हो ।
मानो मेरा हृदय एक पाषाण का हो
गया हो।
जैसे मेरी साँसे कही विलीन हो गई है
और मै सिर्फ एक निर्जीव की भाँति एक मुरत बनकर
खड़ी थी ।
शायद आज एक प्रेम ने फाँसी लगाकर खुदखुशी कर ली थी
या प्रेम के झूठे वायदों में फँसकर
कहीं नदी में जाकर डुबकी लगा ली थी...
पर प्रेम तो कभी मरता नहीं है
था एक प्रेम नाम का परिंदा
जो उस टहनी से उड़कर कहीं
दुर चला गया है ।
स्वयं की तलाश में....
✍️काजल नायक



© kajal Nayak (kaju)