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आखिरी शब्द
"आखिरी शब्द"
आज मैं आपके सामने एक सत्य और हृदय स्पर्शी कहानी लेकर आई हूँ। ये कहानी आपके दिल को भी छू लेगी क्योंकि दिल तो सबका एकसा ही है और दिल के अहसास भी सब एक जैसे ही महसूस करते हैं। हमारे एक परिचित पति पत्नी हैं। कुछ समय पहले उनकी शादी हुई। वे आदर्श दंपती हैं ,दोनों मेें बेइंतहा प्यार था।
शादी के कुछ समय बाद उनके यहाँ एक प्यारा सा
बेटा हुआ। बच्चा इतना खूबसूरत और मासूम था कि उसे देखते रहने को मन करता था। उसकी भोली हरकतें नजर हटने ही नहीं देती थी।
बच्चा धीरे धीरे बड़ा होने लगा ,पर यह क्या, चलना शुरू करते ही बच्चा गिर जाता था । पैरों की मालिश की गई पर कुछ फायदा न हुआ। हड्डी के डाक्टर को दिखाया गया ,उन्होने मालिश के लिए तेल बताया पर कोई फायदा न हुआ। बच्चा चलता तो था पर जमीन नहीं छोडता था। दोनों पैर एकसाथ हवा में उठाकर उछल नहीं पाता था। देखने में बच्चे का स्वास्थ्य ठीक था,कहीं कोई कमी नजर नहीं आती थी हर समय मुस्कुराता चेहरा था, दिमाग भी बहुत तेज था।घर में सबकी भावना का ख्याल रखता था इसलिए सबकी आँखों का तारा था वो।
पर वह दूसरे बच्चों की तरह दौड़ नहीं पाता था । कोई बच्चा उसे मारकर या चिकोटी काटकर भाग जाता तो वह उसे दौड़कर पकड़ नहीं पाता था ।उस वक्त उसकी बेबसी चेहरे पर यूं झलकती थी कि माँ-बाप का दिल खून के आँसू रोता था। बहुत से डॉक्टरों के चक्कर काटे पर कुछ हासिल नहीं हुआ ।
फिर एक neurologist को दिखाया गया । उसने बताया कि बच्चे को Mayopathy नामक बीमारी है जिसका मेडिकल साइंस में अभीतक कोई इलाज नहीं है। इस बीमारी मेें मांसपेशियाँ कमजोर होती जाती है और धीरे धीरे काम करना छोड़ती जाती हैं।
बहुत हाथ पैर मारे,बच्चे की रिपोर्ट्स अनेक बड़े बड़े डाक्टरों को दिखाई पर निराशा ही
हाथ लगी। physiotherapist से सम्पर्क कर exercise भी काफी दिनों तक की गई लेकिन एक सीमा के बाद उससे भी कोई लाभ होता नजर नहीं आया। थक हारकर माँ बाप भी चुप बैठ गए। अब बच्चे को धीरे धीरे लाचार होते देखना ही जैसे उनकी नियति बन चुकी थी। उनके जीवन का हर सपना जैसे चकनाचूर हो गया था ।
बच्चा जब बैठकर खिलौनों से खेल रहा होता और कोई खिलौना अचानक नीचे गिर जाता और वो उठा न पाता तो उसकी वह बेबसी दिल के हजारों टुकड़े कर जाती थी। पिता का दिल बहुत ही मायूस हो चुका था और अन्तत: वे डिप्रेशन में चले गए, मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ - उनके इस प्रश्न का जवाब भला कौन दे सकता था। ममता की मारी माँ तो हँसना ही भूल चुकी थी। हर समय ईश्वर से प्रार्थना करने के सिवाय कुछ भी नहीं था। बच्चा शारीरिक रूप से कितना भी अस्वस्थ था पर मानसिक रूप से बहुत सशक्त था। माता-पिता को वह दिलासा देता था कि मेरी चिन्ता मत करो ,मैं ठीक हो जाउँगा। वह नहीं चाहता था कि घरवाले उसे लेकर हर वक्त परेशान रहे ।अपनी तकलीफ में भी वह सबसे हँसकर बातें करता था और सारी पीड़ा भीतर ही भीतर पी जाता था ,मुस्कुराकर हर दर्द सहन कर लेता था।
धीरे धीरे बच्चे की हालत और भी खराब होती गई।
अब वह बिल्कुल नहीं चल पाता था ,एक प्रकार से बिस्तर पर ही आ गया था।अपने शरीर का काम भी खुद नहीं कर पाता था। फिर उसको निमोनिया हो गया और तेज ज्वर रहने लगा।कफ भी बहुत बढ़ गया था और श्वांस लेने में तकलीफ होने लगी ।डाक्टरों ने अस्पताल ले जाने का परामर्श दिया ।उस वक्त रात हो गई थी अत: सुबह अस्पताल ले जाना निश्चित हुआ। सारी तैयारियाँ कर ली गई। वह रात अत्यंत ही भारी थी ,उस रात को भुलाना आजतक संभव नहीं है ।उस रात बच्चे को नींद नहीं आ रही थी ,अत: उसकी माँ ने बच्चे के सर पर प्यार से हाथ फेरकर कहा कि बेटे अभी तुम सो जाओ ।सुबह तुम्हें जल्दी उठकर अस्पताल जाना है। लेकिन बच्चे का ध्यान दूसरी बातों में था। उसने माँ से कहा कि आपने मेरी बहुत सेवा की है ।आप संसार की सबसे अच्छी माँ हो ।अगर मुझसे कोई भी भूल हुई हो तो मुझे माफ कर देना ।मैं पापा से बहुत प्यार करता हूँ, उन्होने मेरा बहुत ध्यान रखा ।
माँ को समझ नहीं आ रहा था कि आज वो कैसी बातें कर रहा है, इस तरह से तो वो कभी बात नहीं करता था। रात बहुत हो रही थी,इसलिए माँ ने फिर कहा कि अभी तुम सो जाओ , बातें कल करेंगे ।अभी तुम्हें आराम की जरूरत है ,इसलिए आँखें बंद करके सो जाओ ।बच्चे ने आँखे बंद कर ली और कहा "लो मैं सो गया" । माँ कहाँ जानती थी वो अब कभी आँख नहीं खोलेगा ,हमेशा के लिए सो जायेगा। "लो मैं सो गया" ये आखिरी शब्द बनकर रह गए जो आज भी उस अभागी माँ के दिल में गूंजते रहते हैं। एक अमिट घाव देकर वो दुनिया से चला गया और माँ का दिल आज भी उस जख्म की पीड़ा से टीसता रहता है ।