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हुनर की पहचान -2
आगे की कहानी
वार्षिक उत्सव के बाद फिर पढ़ाई का सिलसिला शुरू हुआ,स्कूल खत्म होने के बाद वो ट्यूशन भी पढ़ाती ,खुद भी कोचिंग जाती।इस तरह स्कूल -कॉलेज के साथ वो कंप्यूटर और टाइपिंग कोर्स किया।वह एक ऐसे एरिया में रहती है जहां बहुत नीची सोच थी जैसे - जीन्स न पहनो,लड़को से बात न करो पर रूबी के मम्मी-पापा को बस बेटी पर यकीन है इसलिए सबको अनसुना करते क्योंकि वो मुस्लिम है तो नमाज़ का ध्यान रखती।वो मम्मी-पापा की उम्मीदों पर खरा उतना चाहती थी इसलिए कुछ घर से प्यार और साथ मिला। कुछ आत्म उत्साह के साथ वो आगे बढ़ती गयी।पापा उसे बेटी नही बेटा मानते,उसके सपनों को उड़ान देने में मदद करते फिर ऐसे ही रूबी ने टीचर जॉब जॉइन किया और साथ-साथ आर.जे. का कोर्स शुरू किया।ट्यूशन भी पढ़ाया ।इस तरह फिर रूबी ने रायबरेली रेडियो स्टेशन में भी जॉइन किया।अभी रूबी के पापा उसके साथ नही हैं पर रूबी टूटी नही और अपनी मम्मी को भी सम्भाला।आज वह सफल पत्रकार-रेडियो जॉकी है!
बेटी-बेटे में फ़र्क़ न करके पूरा विश्वास रखकर रूबी के पापा ने कोई गलती नही की।अगर वो आस-पास के लोगों की सुनते तो शायद आज परिवार बिखर जाता।पर रूबी ने भी अपना नाम सार्थक किया,मम्मी-पापा के विश्वास को कायम रखा।
इसलिए माँ-पापा के विश्वास को भी कायम रखकर उनका सम्मान बढ़ाने की सोच रखकर आगे बढ़ना चाहिए।आज रूबी को सब R.J. Darakhksha Qudeer Siddiqe के नाम से जानते हैं।
हमे बचपन मे से ही मां-पापा बहुत कुछ सिखाते हैं,कुछ हम खुद से सीखते हैं।पर बड़े होते होते हम भटक जाते हैं।फिर हमें बाद में महसूस होता है कि future में क्या करेंगे।दोस्तों अपने अंदर छिपे हुए हुनर को पहचानों ।
भटक कर राह कुछ न कर पाओगे
जब होगी लगातार कोशिश तो अपने "हुनर की पहचान"ज़रूर कर पाओगे।💐💐
धन्यवाद-आशा है आप लोगों को कहानी पसन्द आए।💐

© Preet......