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आओ बने सुख दुख में भागीदार
व्यक्ति अक्सर अपने-पराये, कम-ज्यादा में उलझ कर रह जाता है और दयनीय जीवन जीता है, पर ध्यान रहे तुम्हें थोड़ा मिला या ज्यादा, इसकी परवाह मत करना। हां जितना मिला है, उसे अकेले न खाना। मैं अनुभव पूर्वक कहता हूं कि प्रभुकृपा से जो भी कुछ तुम्हें मिला है, उसे मिल-बांटकर खाओ। तुम्हारा यही सहज कर्म एक महान ‘यज्ञ’ बन जायेगा और तुम्हारी यह सुन्दर सी आहुति यज्ञ भगवान व परमात्मा बड़े प्रेम से स्वीकार करेंगे। तुम्हारा हर कर्म सीधे यज्ञीय बनकर प्रभु चरणों में आदर सहित अर्पण हो जायेगा।

वास्तव में प्रभु के प्रति उनके भक्तों का ऐसा अर्पण और समर्पण बड़ा अनोखा होता है। इस पवित्र भाव से देने वाले को भी अच्छा लगता है और...