SANCHI......?
सांची!.......साचीं!.....
जी मां............... अचानक अपनी सास की आवाज सुनकर सांची एक झटके में अपने ख्वाबों से बाहर आयी और आँशू पोंछते हुए सिर पर पल्लू रखकर बाहर आयी
जी माँ......... एक नजर सोफे पर बैठे अपने देवर आदित्य को देख फिर माँ के आदेश के लिए उनकी ओर निहारने लगी। अरे जा आदित्य के लिए कुछ खाने को ला। पता नहीं कुछ खाया भी है या नहीं।
माँ मैं कुछ नहीं खाउंगा सिर्फ एक कप चाय लुंगा उसके बाद आराम करूंगा। ये सुन सांची अन्दर किचन में चाय बनाने चली गई। दरअसल आदित्य सांची से बहुत नहीं घुला था और फिर उम्र में दोनों लगभग समान ही होंगे इसलिए भी उसे सांची से बात करने में थोड़ा झिझक लगती है और फिर वो घर रहता भी तो नहीं था। सांची की शादी के समय इंजीनियरिंग मेंउसका फाइनल सेमेस्टर का इग्जाम था और इसीलिए वो सिर्फ एक दिन के लिए ही आ पाया था। वो हमेशा से हंसमुख स्वभाव का था अपने भाइयों में सबसे छोटा और सबका चहेता है। उसकी बड़ी भाभी श्वेता से खूब बनती है। जब भी घर आता श्वेता को बाहर घूमाने सॉपिंग कराने ले जाता। बड़े भाई तो अपने काम से ही फुरसत नहीं पाते।
चाय............मां के साथ भविष्य के लिए कुछ प्लान कर रहा था आदित्य तभी सांची ने उसकी ओर चाय बढ़ायी। आदित्य ने चाय ले ली। उसे सांची का यूँ खड़ा रहना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था उसे लगा शायद माँ उन्हें बैठने के लिए बोलेंगी परन्तु जब ऐसा थोड़ा इंतजार के बाद नहीं हुआ तो वो खुद ही झिझकते हुए बोला- अ....आ....बैठिए न....
एक ओर धीरे से सांची बैठ गई। आदित्य उससे बात करना चाहता था पर न जाने क्यों नजरे नहीं मिला पा रहा था। वो हिम्मत जुटाकर कुछ बोलता इससे पहले ही श्वेता ने सांची को आवाज दी। आवाज सुनते ही सांची उठकर चली गई।
माँ घर में सब ठीक है न..................आदित्य ने माँ से पूँछा
हाँ सब ठीक है, क्यों..........
नहीं मेरा मतलब सांची भाभी अभी नई आयी हैं तो सब कुछ ...........
अरे बेटा सब वही तो सम्हाल रही है घर की सारी जिम्मेदारी अपने सर पर उठाई रहती है। मुझसे तो अब कोई काम नहीं और श्वेता भी अब कहा कर पाती है उतना। एक साल ही तो हुए है आए हुए और पूरी जिम्मेदारी सम्हाल ली। अब बस तेरी शादी की चिंता है तेरी शादी कर दूँ तो मैं फुरसत हो जाऊँ.....
माँ मैं शादी-वादी नहीं करूंगा....
बिलकुल सही कहा तूने, तू शादी कर लेगा तो मेरा क्या होगा। .........हँसते हुए श्वेता बोली।
तो और क्या मैं अपनी भाभी के साथ खुश हूँ मुझे और किसी की जरूरत नहीं..........
दोनों में ऐसी ही हंसी मजाक की बात चलती रहती है। वैसे आदित्य मुझे लगा था तुम अपनी नयी वाली भाभी के आने के बाद मुझे भूल जाओगे।
भाभी मैं सच्ची मुहब्बत करता हूँ इसलिए....
चलो-चलो देखती हूँ बीवी के आने बाद भी ऐसे रहते हो कि नहीं..........
कोई भी आ जाए भाभी पहला प्यार तो पहला ही होता है......
सो स्वीट, काश तुम मेरी शादी के समय स्कूल ब्वाय न होते तो तुमसे ही शादी करती
......आदित्य के गाल खींचते हुए श्वेता बोली।
इसी बात का अफसोस रह गया भाभी।
तुम दोनो कभी नहीं सुधरोगे.... कहते हुए माँ बाहर चली गई। अच्छा आदित्य आज मुझे शॉपिंग करने जाना था तू चलेगा न....खाली हो न...
अरे भाभी आपके लिए जान हाजिर है टाइम क्या चीज है, बताइए कब चलना है।
शाम 6 बजे तक चलते हैं......
ठीक है.......
इंजीनियरिंग करने के बाद लगभग एक साल बाहर रहने के बाद बैंक में जॉब लगने पर वापस अपने ही शहर में आने का मौका मिला तो आदित्य बिना कुछ सोचे समझे वापस आ गया। उसे हमेशा से घर अच्छा लगता रहा है। पर पढ़ाई के चक्कर में कभी टिक न पाया।
बड़े भाई अनिकेत का फर्नीचर का छोटा सा बिजनेस है वो उसी में व्यस्त रहते हैं। अभिनव यानी सांची के पति, जो मुम्बई में एक प्राइवेट सॉफ्टवेयर कम्पनी में जॉब करते है। काम में इतने व्यस्त रहते है कि हर रोज घर पर बात तक नहीं कर पाते और उनका स्वभाव भी थोड़ा अलग है। वो न ही आदित्य की तरह हसमुंख और कहीं ढल जाने वाला है न ही अनिकेत की तरह जिम्मेदारियों के बोझ तले दबने पर भरोसा करता है। उन्हें अपने काम पर ध्यान देना ज्यादा पसंद है और अपने आपको और आगे ले जाने के प्रति जिद्दी स्वभाव उनका बचपन से है। ये बात भी सब जानते है तो उनसे कोई उम्मीद भी नहीं करता। यहाँ तक शादी के तीन दिन बाद ही मुम्बई चले गए और सांची घर पर ही रही। शादी के 3 महीने बाद पूरी फैमिली गई थी मुम्बई घूमने तो सांची भी गई थी। वो तो अपनी पूरी तैयारी के साथ गई थी उसे लगा था कि वो कुछ दिन वहीं रुक जाएगी पर ऐसा हुआ नहीं, उसे फैमिली के साथ एक हफ्ते में ही वापस आना पड़ा। वो तो अकेले में ठीक से बात भी नहीं कर पायी अभिनव से।
सांची और अभिनव में बहुत फर्क है सांची कम पढ़ी लिखी और छोटे से गाँव से आयी हुई लड़की है। शायद इसलिए भी अभिनव उसे अपने पास नहीं रखना चाहता वो ये शादी नहीं करना चाहता था लेकिन पिता जी के सामने किसकी चलती है उन्होंने तो उसे शादी तय करने के बाद ही बताया था। पिता जी के तबियत भी कुछ ऐसी थी कि ज्यादा कुछ नहीं कर पाया और शादी कर ली, लेकिन सांची को अपने साथ ले जाने के लिए थोड़ा समय मांगा। अभिनव ने अपने घरवालों को समझाया था कि 1-2 साल में शेटल हो जायेगा तो खुद का घर लेगा उसके बाद वो सांची को ले जाएगा।
भाभी कहां हैं आप .....आदित्य ने आवाज लगाई।
बस दो मिनट आ गई....।
अपने कमरे से निकलते हुए आदित्य ने सांची को देखा तो उसे लगा कि क्यों न इन्हें भी बाहर घुमा दूं।
आप भी तैयार हो जाइए हम तीनों चलते हैं.......थोड़ा हिम्मत जुटाकर आदित्य ने कहा।
नहीं, मुझे अभी काम है........ सांची ने जाने से मना कर दिया।
कौन सा काम? आने के बाद भी तो हो सकता है, हम दो घण्टे में आ जायेंगे।
नहीं वो गड़िया को ट्युशन से लाने जाना है, उसकी छुट्टी 7 बजे तक हो जाती है।
कोई बात नहीं आज माँ चली जाएंगी....
क्या हुआ आदी....... तब तक श्वेता आ गई थी।
भाभी मैं कह रहा था कि ये भी हमारे साथ चलती तो इनको भी थोड़ा अच्छा लगता, यही घर पर बोर हो जाती होंगी।
अब मैं क्या कहूँ, कितनी बार तो मैंने बोला कि चलो बाहर घूम आते हैं। पर मेरी इस घर में सुनता कौन है, मैंने तो कहना ही छोड़ दिया।
पर मैं नहीं छोड़ुगा, चलिए जल्दी तैयार हो जाइए मैं नीचे वेट कर रहा हूं, आपके पास 10 मिनट हैं ....
अरे पर मैं..........
अब अगर-मगर कुछ नहीं, मेरे आदी ने कह दिया तो बस चलो।
दोनों मिलकर किसी तरह उसे बाहर ले जाने में सफल रहे। आदित्य सबको खुश देखना चाहता है चाहे जिस तरह। माँ सांची की बड़ी तारीफ कर करती हैं उनका मानना था कि शायद ही ऐसी बहू किसी की हो, पूरे घर की जिम्मेदारी जो वो उठा रही थी। पिता जी की तबियत. उनकी दवा से लेकर गुड़िया का स्कूल तक सांची। गुड़िया ज्यादातर टाइम सांची के पास ही रहती है। सांची का भी समय पास होता। कभी उसके बाल बनाती तो कभी उसकी गुड़ियों को सजाती और उसके लिए नई-2 गुड़िया अपने हाथों से बनाती।
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सांची बेटा......! मेरी घड़ी नहीं मिल रही है......शाम जब सांची गुड़िया के साथ बैठकर उसके साथ खेल रही थी तभी पिताजी ने नीचे से पुकारा।
वो तुरन्त उठी और नीचे गई पिता जी की घड़ी ढूंढकर दी।
पिताजी मुस्कुराए और उसके सिर पर प्यार भरा हाथ रखकर बाहर चले गये। हरिनारायन जी अपनी बहुओं को ही बेटी मानते है। उनकी बड़ी इच्छा थी कि घर में बेटी का जन्म हो पर तीन बेटों के बाद उन्होंने उम्मीद छोड़ दी, लेकिन बहुओं में उन्होंने हमेशा अपनी बेटी ही देखा। कोई शासन नहीं और न ही कोई प्रतिबंध। उन्हें तो ये भी नहीं पसंद की उनकी बहुएं उनके सामने सिर पर पल्लू रखे। सांची को आये दिन इसलिए भी डांट देते हैं। और सांची तो उनकी चहेती बहू है। उसके व्यवहार से ही तो खुश होकर उन्होंने उसे अपने घर की बहू बनाने का फैंसला किया था। और पिता जी के फैंसले के खिलाफ जाने की हिम्मत उनके बेटों में नही। सच कहा जाये तो अभिनव के लिए शादी मात्र उसके पिता जी का आदेश था और कुछ नहीं। हरिनारायन जी सामाजिक व्यक्ति हैं उनके लिए मान-सम्मान इज्जत का बड़ा महत्व है।
सांची को याद है जब हरिनारायन जी ने उसके घर में सांची और अभिनव के विवाह का प्रस्ताव रखा था। सब कितने खुश थे। सांची के पिता की आँखे भर आयी थी उन्हें भरोसा ही नहीं हो रहा था उनकी बेटी के लिए इतने बड़े घर से शादी का रिश्ता चलकर आयेगा।
कभी-कभी बैठे-बैठे सांची की आंखों में आंशू यूहीं आ जाता है कि कितना सुंदर सपना था शादी के पहले का। सपनों में सब कुछ अपने मन का ही तो रहता है चाहे जितना अच्छा सोच लो कोई रोकने-टोकने वाला नहीं। जिसकों उसने देखा भी नहीं था उसके सपने अपने आँखों में पाल कर बैठी थी। अभिनव की फोटो भी उसने एक झलक ही देखी थी, वो मुस्कुरा रहा था मानो उसे ही देख रहा हो, सांची शरमा गई थी। उसके बाद तो जब भी उसे समय मिलता सपने ही बुना करती अपने ससुराल के लिए, अपने पति के लिए। एक अच्छी बहु एक अच्छी पत्नी बनने का ही तो सपना देखती वो। अच्छी बहू तो वो बेशक बनी मगर...... क्यूं सोचा हुआ होता नहीं है। कामों में व्यस्त रह कर वो खुद से भागने की कोशिश करती, लेकिन एक पल के लिए भी अकेले बैठ जाती तो फिर वही सब चलने लगता जो बीत गया और शायद कभी वापस.......
आप रो रहीं हैं....?
आदित्य के आवाज से अचानक सांची के ख्वाब टूटे। उसने जल्दी से अपने आंशू पोंछे और खड़ी हो गई। वो अब भी आदित्य से नजरे नहीं मिला रही थी।
आपको कुछ चाहिए था। बिना आदित्य की ओर देखे सांची ने पूँछा। थोड़ी देर आदित्य उसे देखता रहा और फिर हाथ की कसी हुई मुट्ठी को वहीं झटकर बिना कुछ बोले वापस चला आया। वो अपने कमरे में दरवाजा बन्द करके बैठ गया। उसे बहुत बुरा सा फील हो रहा था। अपने हाथ से बार-बार मत्थे को रगड़ता फिर मूँ में हाथ रखकर कुछ सोंचने लगता। सांची की आज जो हालत है उसके पीछे आदित्य भी तो कहीं न कहीं जिम्मदार था न। कैसे बर्दाश्त कर पायेगी जब उसे पता चलेगा कि ......एक पल के लिए आदित्य सहम गया उसकी आंखे और मूँ दोनों खुले रह गये। ये क्या कर दिया तूने अभिनव......
........to be continue
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