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नशे की रात ढल गयी-20
(20) तीन-तीन लड़कियों की शादी और वह भी थोड़े-थोड़े अंतराल पर- कोई मजाक नहीं । .. लगा कि हम सचमुच गंगा नहा लिए ,सर से कोई भारी बोझ सा उतर गया । लेकिन लड़कियाँ क्या सचमुच में बोझ होती हैं ?..मेरी तीन लड़कियों में सबसे बड़ी मोनी,तब शालू और तिसरी शिल्पी थी। अनुभूति, अनुकृति और अस्मिता के नाम से पूरे मोहल्ले में ढुढ़ते रह जायेंगे परन्तु कोई नहीं बता पायेगा कि ये किसकी लड़कियाँ हैं। मेरे नाम के साथ भी कुछ ऐसा ही होता रहा । मुकुल को तो सब जानते ,मगर दया शंकर शरण ?.. कोई नहीं । अक्सर डाकिये की गलती से मेरे नाम की चिट्ठियां कभी मोहल्ले के दया शंकर शर्मा के यहाँ पहुँचती रहीं और कभी उनकी मेरे यहाँ । इसतरह हमदोनों हमनाम होने का खामियाजा उठाते रहे । बहुतों बार टेलिफोन और बिजली के बिल फाइन के साथ भरने पड़े । जब तीसरी बार भी लड़की हुई तो दोस्तों ने मजाक ही मजाक में कहा कि इसबार का नामकरण सहानुभूति होना चाहिए। लेकिन मैंने सबको चौकाते हुए उसका नाम अचानक अस्मिता रख दिया । उनदिनों स्त्री-विमर्श का दौर था और यह जुमला पत्र-पत्रिकाओं में बारबार उछलते रहता कि हमारे समाज में स्त्री...