उम्र के आखिरी पड़ाव में
कविता की मां की तबीयत खराब थी। उनको सांस की तकलीफ़ कुछ ज़्यादा थी। कईं बार डॉक्टर को दिखाया पर असर ना के बराबर था। एक दिन उनके पारिवारिक मित्र ने एक योग आश्रम के बारे में बताया जो पहाड़ी स्थल पर बना था। कविता के पापा ने वहां का अपॉइंटमेंट बुक कराया और वहीं पर कमरा लिया। चार दिन बाद वो लोग वहां के लिए निकल पड़े। वहां पहुंच के डॉक्टर से मिले तो उन्होंने कुछ आसन, परहेज़ और दवाइयां बताईं। कविता के पापा ने कहा, “तुम कल यहां के मेडिकल स्टोर से दवाइयां ले लेना फिर हम वापस निकल चलेंगे। “जी पापा” कविता ने कहा।
अगले दिन अपनी पसंद का काले और सफेद रंग का सूट पहनकर कविता दवा लेने चल दी। ठंडी तेज़ हवा में उसका दुपट्टा और हल्के गीले लंबे बाल खुलकर लहरा रहे थे। वह डॉक्टर के पर्चे पर नज़र बना कर चल ही रही थी कि उसकी नज़र सामने पड़ी। वहां एक लड़का कुछ लोगों के साथ खड़ा था और उसकी तरफ़ देख रहा था। उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि उसको कविता बहुत अच्छी लगी थी। जैसे जैसे कविता उसके पास से निकलती जा रही थी वैसे ही उस लड़के की गर्दन घूमती जा रही थी। कविता ने लेकिन उसको पूरी तरह ध्यान से नहीं देखा था।
“अमित! अमित! कहां खो गया यार?” उस लड़के के दोस्तों ने आवाज़ दी। “कुछ नहीं, चलो”। हवा के झोंके के साथ बात उड़ गई लेकिन अमित के जीवन में वह पहली नज़र फिर पड़नी थी यह उसे नहीं पता था।
वह दिल्ली की बस में जा रहा था की गाज़ियाबाद से कविता उस बस में चढ़ी और अरविंद के पीछे वाली सीट पर बैठ गई। अमित को समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह क्या हो रहा है, कौन है वह लड़की जो उसको दिखती है। ऐसा लगता है कि भगवान ने उन दोनों का साथ लिखा है। वह किसी न किसी बहाने साइड से या फिर पूरा पीछे होकर उसको देख लेता था। उसको अच्छे से देखने के लिए वह पन्द्रह मिनट पहले ही गेट के पास जाकर खड़ा हो गया। कविता को थोड़ा अटपटा लग रहा था इसलिए वह किताब पढ़ने लग गई।
थोड़ी देर बाद उसका भी स्टाप आने वाला था इसलिए वह गेट के...
अगले दिन अपनी पसंद का काले और सफेद रंग का सूट पहनकर कविता दवा लेने चल दी। ठंडी तेज़ हवा में उसका दुपट्टा और हल्के गीले लंबे बाल खुलकर लहरा रहे थे। वह डॉक्टर के पर्चे पर नज़र बना कर चल ही रही थी कि उसकी नज़र सामने पड़ी। वहां एक लड़का कुछ लोगों के साथ खड़ा था और उसकी तरफ़ देख रहा था। उसके चेहरे की मुस्कुराहट बता रही थी कि उसको कविता बहुत अच्छी लगी थी। जैसे जैसे कविता उसके पास से निकलती जा रही थी वैसे ही उस लड़के की गर्दन घूमती जा रही थी। कविता ने लेकिन उसको पूरी तरह ध्यान से नहीं देखा था।
“अमित! अमित! कहां खो गया यार?” उस लड़के के दोस्तों ने आवाज़ दी। “कुछ नहीं, चलो”। हवा के झोंके के साथ बात उड़ गई लेकिन अमित के जीवन में वह पहली नज़र फिर पड़नी थी यह उसे नहीं पता था।
वह दिल्ली की बस में जा रहा था की गाज़ियाबाद से कविता उस बस में चढ़ी और अरविंद के पीछे वाली सीट पर बैठ गई। अमित को समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ यह क्या हो रहा है, कौन है वह लड़की जो उसको दिखती है। ऐसा लगता है कि भगवान ने उन दोनों का साथ लिखा है। वह किसी न किसी बहाने साइड से या फिर पूरा पीछे होकर उसको देख लेता था। उसको अच्छे से देखने के लिए वह पन्द्रह मिनट पहले ही गेट के पास जाकर खड़ा हो गया। कविता को थोड़ा अटपटा लग रहा था इसलिए वह किताब पढ़ने लग गई।
थोड़ी देर बाद उसका भी स्टाप आने वाला था इसलिए वह गेट के...