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बचपन के वो दिन माँ और पिता जी के साथ
बचपन के वो दिन बड़े सुहाने होते थे,
जब कहीं माँ-पिता जी अपने साथ में लेके जाते थे।
वो किसी चीज के लिए जिद्द करना ,और पूरा करवाना ,
आज भी याद करके आंखों में आंसू आ जाते हैं,पापा के बिना खाना, खाना अच्छा नहीं लगना,माँ के गोद मे बिना सोये चैन ना मिलना, वो सब याद आता है।
आज ये मंजर है कि सब कुछ होते हुए भी सब खाली-खाली है,
आज भी एक प्यास लगी रहती है,
कास वो बचपन लौट आता जब हम पचास पैसे में पूरा मेला घूम आते थे,
और मन में कोई दुःख ना होता था,
आज सब कुछ है ,
लेकिन वो बचपन नहीं है,
वो बचपन के दोस्त नहीं,
वो बचपन का लाढ प्यार नहीं,
अब तो रोते है तो कोई पूछता भी नहीं हुआ क्या है,
बचपन में थोड़ा सा रोने पर पूरा घर ही गोद में लिये चुप कराता था ,
और बार बार यही पूछा जाता था, क्या- हुआ क्या-हुुआ!
वो बचपन कोई लौटा दे ,वो बचपन का माँ-बाप का प्यार दिला दे ।
जीवन का सबसे सुखद पल बचपन ही है।
काश वो बचपन फिर से लौट आता,
माँ के गोद में फिर से सो जाता !!

विशाल मिश्रा की कलम से~