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कर्ज (भाग - २)
(कहानी कर्ज भाग -१से आगे )
आधी रात बीत जाने पर हेमू लघु शंका करने के नींद से जागा। वह लघुशंका कर वापस आया।मटकी से दो लोटा ठंडा पानी पीया।तब उसने बेलों को आपस में बात करते हुए सुना। उसके लिए बेलों की आपस में बात करना ,आश्चर्यजनक था। इस आश्चर्यमयी बातचीत को सुनने के लिए उसने अपने भाई नेमू को भी जगा दिया। वहां बंधे हुए दो बैल आपस में बातें कर रहे थे। हेमू और नेमू,दोनो अपनी अपनी खटिया पर बैठे बैठे उन बेलों की बातचीत सुनने लगे।
एक बैल दूसरे बैल से बोला, भाई मेने पिछले जनम में इस तेली से जो पिछले जनम में एक धनाढ्य व्यक्ति था, से तीन हजार रुपए उधार लिए थे,उसे मै उस जनम में जीते जी नही चुकाया।और कर्जा बिना चुकाए ही मर गया। फिर उस जनम के बाद इस जनम में बैल बना।और इस तेली की घाणी को, चला चला कर, पिछले जनम में लिया कर्जा, और उसका ब्याज चुकाता रहा। कई बरसों तक लगातार घाणी चलाने से आज इस तेली का कर्जा पूरा चुकता हुआ है।उसने दूसरे बैल से पूछा,तुम्हारा कितना हिसाब अभी बाकी है। दूसरे बैल ने बताया की मैने पिछले सत्रह बरसों से,इस तेली की घाणी को अपना पसीना बहा कर चलाया है,और उसकी मजदूरी से अपना कर्जा लगभग पूरा किया है,केवल पचास रुपए बाकी रहे है,जो मैं कल सुबह चुका दूंगा। पहले वाला बैल दूसरे बैल से अंतिम विदा लेते बोला।भाई मेरा कर्जा पूरा हो गया,अब मैं यहांसे चलता हूं।इतना कह कर चुप हो गया और...