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अन्य श्रुतो की अभिव्यक्ति और माध्यम क्या है।।
भाव तत्व भोग वो है जो हर डोर की बेल है मगर कलियुग में भाव तत्व ना होने के कारण हर स्त्री का भोग असुध माया गया क्योंकि हर भोग कलियुग द्वारा गृहसत होने के कारण अपने कमरपद मे बादा होने के अपनी अपनी स्त्री की योनि धीरे धीरे छोड़ रहा है जैसे वात्सल्य भोग, भाव तत्व भोग ,बहन और भाई भोग अपनी योनि प्रेम काल के अन्त के साथ ही छोड़ चुके हैं ।। प्रेमी-प्रेमिका अपना भोग प्रेम की योनि एक सर्वगुण संपन्न स्त्री के विलीन हो होने के साथ छोड़ चुके हैं ।। और इसके साथ ही अन्य भोग की शुरूआत हुई है।।मोह, वसना ईशा मया स्त्री भोग समझकर सब उसे प्रेम काल कहते हैं।। मगर यह एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में असत्य है क्योंकि इन सबसे प्रेम भोग नहीं बल्कि
मोह, वसना ईशा ,माया,भोग का प्रयोग कर प्रेम गाथा अनन्त का आस्तित्व विलीन करती है ।।
और तो और वसना भोग योनि में शत्रुता भोग का प्रयोग कर ईशा भोग प्रदान कर लज्जा भोग , स्वाभिमान भोग, कर्म का रहस्य पलट देता है।।
कलियुग द्वारा क्या मिला है छल,हवस, वासना भोग, मलभोग सिर्फ छल भोग के कारण पूर्ण है।।
क्योंकि असुध मलीन माया प्रेमहीन आदि प्रकार की योनि का भोग इस प्रेम गाथा अनन्त वर्जित माना गया है।। इन स्त्री की वजह श्रृष्टि में प्रेम गाथा अनन्त असंभव है।।
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