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कर्ज (भाग -१)
बात बहुत पुराने जमाने की है। कहते उस जमाने में इंसान और जानवर आपस में बात कर लिया करते थे। उसी दौर की बात है। मारवाड़ के हाड़ेचा नगर में, सेठ जांवत राज अंगारा रहते थे।लक्ष्मी जी की उन पर बहुत कृपा थी। आस पास के इलाकों में, उनकी पैठ थी।सदा सच बोलना और भगवान महावीर स्वामी की भक्ति करना उनका रोजाना का काम था।उन्होंने अपने गांव के आम चोहटे पर, मकराना के सफेद पत्थरों से जिनालय बनाया था। उनकी यश कीर्ति का डंका ,चारों तरफ बजता था। वे अपने चोखट पर आए किसी भी व्यक्ति को निराश नहीं भेजते थे।लेकिन उनसे, उधार रुपए लेने, उनके पास ,बहुत कम या नही के बराबर लोग आते थे।क्योंकि उनकी रुपए उधार देने की एक विचित्र शर्त थी। जहां दूसरे सेठ किसी को भी गहना, जमीन या कोई कीमती सामान गिरवी रखने पर ही उधार देते थे और रकम भी गिरवी रखे गए समान, की कीमत का आधा ही देते थे।जबकि सेठ जांवतराज कहते थे , कि धन चाहे जितना उधार ले जाओ, लेकिन वापस अगले जनम लूंगा।उधार दिया हुआ धन, इस जनम में वापस नहीं लूंगा। ऐसी विचित्र शर्त के कारण, लोग उनसे उधार धन लेने आते ही नही थे। क्योंकि उस दौर में, कोई भी आदमी कर्ज लेकर,मरना नहीं चाहता था। सेठ जांवतराज अंगारा की यह बात, चारों तरफ फैल गई थी। उसी दौर में बेईमान किस्म के दो लुच्चे आदमी थे। उनमें से एक का नाम हेमू ,और दूसरे का नाम नेमू था। जब दोनो को सेठ...