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पैसों की खनक
जिधर देखो नोटों की चमक, पैसों की खन खन और पैसों का शोर है
दुनिया की नज़र में अमीर आदमी इज़्ज़तदार और ग़रीब इंसान चोर है
जिस दरवाज़े से पैसा आता है उसी रास्ते से इंसान बहुत कुछ गवां देता है
इंसानियत, ईमानदारी, भावनाएं और रिश्ते सब धीरे धीरे खो देता है

पैसों के तराज़ू में सब झूठ है, रिश्तों का कोई मोल नहीं है
सगा भाई भाई का गला काट रहा है, कोई किसी का नहीं है
पहले रिश्ते आचरण, इंसानियत, अच्छे संस्कारों से बनते थे
अब अमीरी और पैसों के ज़्यादा शोर से, वज़न से बनते हैं

आगे बढ़ कर, गला काटने की प्रतियोगिता में हर कोई बिकाऊ है
हर इंसान की नीयत खोटी और ईमान ताक पर रखे बिकाऊ हैं
भूल चली दुनिया एक दूसरे को, ज़्यादा पैसा कमाने की होड़ में,
जिधर देखो पैसों की मारामारी और हाय हाय का शोर है दुनिया में

पैसों की खनक और चमक में हुई औलादें अंधी और बेखबर हैं
विदेश में जा बसी संतान का, माता पिता को रहता हर पल इंतज़ार है
कहीं अपना ही अपना नहीं, सगे खून के रिश्तों में भी बैर है
मुँह में राम बगल में छुरी है, झूठ के भी बड़े और लंबे पैर हैं

हर बुराई पैसों की खनक से दबा, मानवता कुचल आगे बढ़ रहे हैं
गरीब बुरा और अमीर सदाचारी आचरण वाले साधु बन घूम रहे हैं
पैसों के अभाव में जाने कितने ही अनमोल घर टूट टूट कर बिखर रहे हैं
अस्पतालों में पैसों के अभाव में, जीने की लालसा लिये तड़प रहे हैं

बिन ब्याही बेटियाँ घरों में बैठी सुहागन के सपने संजो रही हैं
माँग न पूरी करने की सूरत में कितनी ही परियाँ जल रही हैं
शिक्षा बिक रही, न्यायालय और न्याय करने वाला बिक रहा है
और क्या नज़ारा बयां करें, जिधर देखो हर इंसान बिक रहा है

© सुधा सिंह 💐💐