...

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दर्द
आओ तुम्हे कुछ समझाते है,
लड़की औरत नही आसान, उनके दुःख बताते है !
गर्भ मे ही मरवाई जाती है'
अगर ले लिया जन्म तो संसार मे तो लड़की होने का मोल चुकाती है !
त्याग और सहनशीलता कि मूरत बनती है,
हर रिश्ते कि अग्निपरीक्षा मे जलती है !
बेटी कभी बहन कभी सखी तो कभी नन्द,
कभी जीवनसाथी कभी बहु, उस से है रिश्ते अनंत !
जहाँ उसको संसार मे बराबर होने का दर्जा देते है "
वही तू है लड़की तुझ से नही होगा, कह के उसे कमजोर क्यों समझ लेते है !
आंख से आंख ना मिलाना, हसीं के स्वर भी ना ऊंचे करना,
दुप्पटा सही से लेना, अगर करें कोई अत्याचार तो चुपचाप सह लेना...
अरे बहु तुम इस घर कि कुछ लाज हया है कि नही '
आज तक कुछ काम किया है भी कि नही..
अगर कोई छेड़े तो खामोश रहना, लड़के को कोई कुछ नही कहेगा, तुमको ही पड़ेगा सहना !
और ना जाने कितनी बात सुनाते है,

" अब कुछ सवाल समाज से "
जब गर्भ मे ही लड़की जान के मरवाते हो '
जब उसके शरीर क्या उसकी रूह से भी खेल जाते हो !
तो क्यों देवी पूजा करते हो?
कौन से खुदा की इबादत करते हो?
उसको तो कपडे पहनने का ढंग बताते हो,
तो लड़के को क्यों नही लड़की की इज्जत करना सिखाते हो?
सांस नहीं माँ है तेरी, तो बेटी जैसा फिर क्यों नही रखते हो?
अर्धाग्नि है जब तुम्हारी, तो उसके सपनो से समझोता करवाते हो?
" कुछ बात कुछ एहसास "
अपनी खुशी का भी दान करती है,
औरत नही कमजोर, वो तो भगवान को भी गर्भ मे रखती है !
प्रेम से बने अन्नपूर्णा तो अत्याचार होने पर दुर्गा काली भी बनती है !
कहने को तो उसके होते है दो घर
लेकिन खुद का वजूद का आशियाना ढूंढती है !
जानती है राह नहीं होंगी आसान तब भी काटो क़ी राह मे चलती है !
कभी हसीं का पात्र तो कभी त्रिस्कर की अग्नि मे जलती है !
प्रेम हृदय मे जिसके आपार हो, वो प्रेम के लिए तरसती है !
माँ बन कर संतान को सर्वपथम ज्ञान देने वाली, बाद मे उनसे ही तमीज क़ी बात सीखती है !
जो दिया जीवन भर का समय,
बाद मे समय पाने के लिए तरसती है !
तो नारी त्याग क़ी मूरत है...........