रक्षा का जुनून
रक्षा उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के एक छोटे से कस्बे में रहती थी जो एक शारीरिक अक्षम १४ साल की बच्ची थी. उसका दाहिना पैर थोड़ा छोटा था जिस कारण वह लाठी के सहारे चलती थी लेकिन घर का सारा काम करने के साथ साथ वह पढाई में भी बहुत अच्छी थी.
जिस कारण अपनी सभी शिक्षिकाओं की प्रिय छात्रा थी लेकिन उसकी शारीरिक अक्षमता के कारण कोई भी सहपाठी उससे बात करना पसंद नहीं करता था जिस कारण उसका कोई दोस्त नहीं था.
जिस कारण जब lunch time या शिक्षिका की अनुपस्थिति या किसी अन्य कारण खाली समय मिलने पर बाकी बच्चे आपस में बातें करते या खेल रहे होते तब रक्षा पुस्तकालय में जाकर किताबें पढ़ा करती.
लेकिन उसे इस बात का बुरा लगता कि पढाई में इतनी अच्छी होने के बाद भी कोई मुझसे दोस्ती तो दूर की बात है बात भी नहीं करना चाहता सिर्फ़ इस लिए क्योंकि मैं लाठी लेकर चलती हूँ. ठीक है कोई बात नहीं एक दिन मैं ऐसा काम करूंगी कि मुझसे दोस्ती करने वालों की line लग जाएगी.
हमेशा वह यही सोचती कि आख़िर ऐसा क्या करूँ कि मैं भी दोस्त बनाने के लायक हो जाऊँ? उसके मन में विचार आया कि कुछ ऐसा करना चाहिए जो लोग सोचते हैं कि मुझसे नहीं होगा. फिर उसने खिलाड़ी बनने की ठान ली और उसने सोचा कि मैं एक अच्छी तैराक बनकर अपना और अपने देश का नाम रोशन करूँगी. फिर यह बात उसने अपने पिता अशोक जी को बताई.
रक्षा:( गंभीरता से) पापा, मुझे आपसे एक जरूरी बात करनी है.
(अपनी छोटी सी बिटिया के मुंह से इतना गंभीर स्वर सुनकर अशोक जी आश्चर्यचकित हो गए. )
अशोक जी: (आश्चर्य से) हाँ बोल बेटा क्या बात है?
रक्षा: पापा, मैं बहुत दिनों से आपको एक बात बताना चाह रही थी लेकिन आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? यह सोचकर नहीं बता पा रही थी.
(इतना सुनकर अशोक जी स्तब्ध रह गए.)
अशोक जी: (कुछ देर बाद) बेटा, बेझिझक बताओ क्या बात है?
रक्षा: पापा, मैं पढ़ने में इतनी अच्छी हूँ, अच्छे अंक भी लाती हूँ, सभी शिक्षिकाएं भी मुझसे बहुत खुश रहतीं हैं और मुझे बहुत प्यार भी करतीं हैं. लेकिन.....
अशोक जी: लेकिन क्या? क्या कहना चाहती है? बेटा बिना डरे बोल दे.
(तभी अशोक जी की नज़र रक्षा की आंखों पर पड़ती है.)
अशोक जी: अरे! ये क्या? मेरी बच्चीे की आंखों में आंसू! क्या बात है? बेटा, क्यों रो रही हो?
रक्षा: पापा, मुझसे कोई बात करना नहीं चाहता, दोस्ती तो दूर की बात...
जिस कारण अपनी सभी शिक्षिकाओं की प्रिय छात्रा थी लेकिन उसकी शारीरिक अक्षमता के कारण कोई भी सहपाठी उससे बात करना पसंद नहीं करता था जिस कारण उसका कोई दोस्त नहीं था.
जिस कारण जब lunch time या शिक्षिका की अनुपस्थिति या किसी अन्य कारण खाली समय मिलने पर बाकी बच्चे आपस में बातें करते या खेल रहे होते तब रक्षा पुस्तकालय में जाकर किताबें पढ़ा करती.
लेकिन उसे इस बात का बुरा लगता कि पढाई में इतनी अच्छी होने के बाद भी कोई मुझसे दोस्ती तो दूर की बात है बात भी नहीं करना चाहता सिर्फ़ इस लिए क्योंकि मैं लाठी लेकर चलती हूँ. ठीक है कोई बात नहीं एक दिन मैं ऐसा काम करूंगी कि मुझसे दोस्ती करने वालों की line लग जाएगी.
हमेशा वह यही सोचती कि आख़िर ऐसा क्या करूँ कि मैं भी दोस्त बनाने के लायक हो जाऊँ? उसके मन में विचार आया कि कुछ ऐसा करना चाहिए जो लोग सोचते हैं कि मुझसे नहीं होगा. फिर उसने खिलाड़ी बनने की ठान ली और उसने सोचा कि मैं एक अच्छी तैराक बनकर अपना और अपने देश का नाम रोशन करूँगी. फिर यह बात उसने अपने पिता अशोक जी को बताई.
रक्षा:( गंभीरता से) पापा, मुझे आपसे एक जरूरी बात करनी है.
(अपनी छोटी सी बिटिया के मुंह से इतना गंभीर स्वर सुनकर अशोक जी आश्चर्यचकित हो गए. )
अशोक जी: (आश्चर्य से) हाँ बोल बेटा क्या बात है?
रक्षा: पापा, मैं बहुत दिनों से आपको एक बात बताना चाह रही थी लेकिन आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? यह सोचकर नहीं बता पा रही थी.
(इतना सुनकर अशोक जी स्तब्ध रह गए.)
अशोक जी: (कुछ देर बाद) बेटा, बेझिझक बताओ क्या बात है?
रक्षा: पापा, मैं पढ़ने में इतनी अच्छी हूँ, अच्छे अंक भी लाती हूँ, सभी शिक्षिकाएं भी मुझसे बहुत खुश रहतीं हैं और मुझे बहुत प्यार भी करतीं हैं. लेकिन.....
अशोक जी: लेकिन क्या? क्या कहना चाहती है? बेटा बिना डरे बोल दे.
(तभी अशोक जी की नज़र रक्षा की आंखों पर पड़ती है.)
अशोक जी: अरे! ये क्या? मेरी बच्चीे की आंखों में आंसू! क्या बात है? बेटा, क्यों रो रही हो?
रक्षा: पापा, मुझसे कोई बात करना नहीं चाहता, दोस्ती तो दूर की बात...