मुश्किल है मर्द का मर्द बने रहना…
टूटता है, बिखरता है
वो मर्द है
वो इसी तरह निखरता है…
आदमी को प्रस्तर से निर्मित प्रतिमा का प्रतिमान माना जाता रहा है…उसे संवेदनाओं से परे रहकर संघर्षशील दिखना ही होता है…समाज उसे इसी सशक्त स्वरूप में...
वो मर्द है
वो इसी तरह निखरता है…
आदमी को प्रस्तर से निर्मित प्रतिमा का प्रतिमान माना जाता रहा है…उसे संवेदनाओं से परे रहकर संघर्षशील दिखना ही होता है…समाज उसे इसी सशक्त स्वरूप में...