।। गुल दोपहरी ।।
।। गुल दोपहरी ।।
शाम का समय था। अपने मोबाइल और लेपटाप पर काम करके थकी आँखों को तरोताजा करने के लिए बाहर बालकनी में घूमने लगी। छोटे-छोटे कप-डिब्बों में लगी गुल-दोपहरी जून महीने की कड़ी धूप से मुरझा सी गई थी। सोचा इसे भी तरोताजा कर ही देती हूँ।
जब पानी डाल रही थी तभी हमारे घर के सामने रहने वाली मीना भाभी अपने घर से बाहर निकलीं। माडर्न स्टाइल का कुर्ता-प्लाजो साथ में स्कार्फ पहने बहुत स्टाइलिश लग रही थीं। खुद ही कपड़े सिलती हैं। घर में ही बुटीक खोल लिया है। बढ़िया काम चल रहा है और भाभी की काया कल्प हो रही है।
हाथ हिलाकर दोनों तरफ से अभिवादन का आदान-प्रदान हुआ। वो इतनी...
शाम का समय था। अपने मोबाइल और लेपटाप पर काम करके थकी आँखों को तरोताजा करने के लिए बाहर बालकनी में घूमने लगी। छोटे-छोटे कप-डिब्बों में लगी गुल-दोपहरी जून महीने की कड़ी धूप से मुरझा सी गई थी। सोचा इसे भी तरोताजा कर ही देती हूँ।
जब पानी डाल रही थी तभी हमारे घर के सामने रहने वाली मीना भाभी अपने घर से बाहर निकलीं। माडर्न स्टाइल का कुर्ता-प्लाजो साथ में स्कार्फ पहने बहुत स्टाइलिश लग रही थीं। खुद ही कपड़े सिलती हैं। घर में ही बुटीक खोल लिया है। बढ़िया काम चल रहा है और भाभी की काया कल्प हो रही है।
हाथ हिलाकर दोनों तरफ से अभिवादन का आदान-प्रदान हुआ। वो इतनी...