संस्कार हमारी धरोहर
जब कभी हमारे जिह्वा पर संस्कार शब्द आता है तो मन पुलकित हो उठता है लेकिन तभी कुछ सोचकर मन उदास हो जाता है । ऐसा इसलिए क्योंकि जिस संस्कार को कभी हम अपना अंग मानते थे उसे आज हम एक बंधन मान बैठे हैं ।
बहुत समय पहले जब हम बाहर निकलते थे तो मां बाऊ जी को और घर के सभी आदरणीय जनों के चरण स्पर्श करके निकलते थे और जो हमें बाहर हमसे बड़ा मिलता था यदि हम उससे परिचित होते थे तो उसे भी प्रणाम करते थे जिसके फलस्वरूप यही आदत हमारे बच्चे भी सीखते थे...