...

6 views

आलू
कल शाम यूं ही टहलते टहलते मैं बाजार की तरफ निकल गया। वहां पहुंच कर मन में एक ख्याल आया अब ही गया हूं तो कुछ सब्जियां भी लिए चलता हूं। यही सोचकर एक एक बड़ी सी दुकान के में मैं प्रवेश करता हूं। और वहां का मंजर देखकर स्तब्ध रह जाता हूं।
इधर-उधर बहुत नजर घुमाई मग़र सारी सब्जियों की टोकरियां खाली पड़ी हुई थी और कुछ जो बाकी बचे थे वह सुख थे ।सिवाय पनीर के और कुछ दिख नहीं रहा था वहां ..?? कितना खाऊं पनीर अभी 4 दिन से लगातार पनीर की सब्जियां ही घर में बन रही थी ।कभी पालक पनीर तो कभी पनीर बटर मसाला , कभी पनीर चिंगारी और कभी पनीर बादामी ..! थक चुका था मैं पनीर की सब्जियां खा खा कर। जब कुछ भी अच्छा नहीं दिखा
और ना ही हरी सब्जियां ही मिली तो मेरी नज़र आलू को ढूंढने लगी।सोचा चलो आलू से ही काम चला लुंगा । और मैं आलू की टोकरियों की तरफ बढ़ा । वहां टोकरियों में आलू को देख मैं घबरा गया इतने बड़े-बड़े आलू पड़े पड़े
मुंह चिढ़ा रहे थे।ये बड़े वाले आलू देखने में जितने डरावने लगते हैं।खाने में उतने ही बेस्वादें भी। फिर भी मन को मार कर जैसे ही मैंने एक आलू की तरफ अपना हाथ बढ़ाया। वहीं बगल में पड़े छोटे आलूओ ने मेरा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया।उन छोटे आलुओं को देख कर ऐसा लगा जैसे वो मुझ से कह रहें हो क्या दादा मुझे भूल गए तुम..?? बचपन में कैसे मुझे कभी गोली तो कभी गेंद बना कर खेला करते थे। और मैं खो गया अतीत की यादों में उस समय आलूओ को चार अलग-अलग भागों में बांटकर रखा जाता था। सबसे बड़े वाले आलू पापड़ के लिए,उससे छोटे आलू परांठे के लिए, उससे छोटे सब्जियों के लिए और सबसे छोटे वाले आलूदम बनाने के लिए।इतने में तंद्रा भंग हुई हमारी और लगभग एक किलो छोटे वाले आलू खरीद कर जब मैं घर आया और श्रीमती जी की हाथों में आलू की थैली पकड़ा दिया।
उन आलुओं को देख कर श्रीमती जी मुझे ऐसे घुरी जैसे मैं आलू नहीं बल्कि अपनी गर्लफ्रेंड को ले आया हूं...!!
फिर उन आलूओ को अच्छी तरह धोकर मैंने तीन तरह की सब्जियां बनाई ।थोड़े आलूओ को उबालकर मैंने उससे परांठे बनाएं,थोड़े से आलू से आलू गोभी की बिना प्याज लहसुन वाली सब्जी तैयार की और बाक़ी बचे आलूओ से मैंने ड्राइ आलू मसाला बनाया।जब मैं परांठे के लिए उबालें आलुओं को छीलने के लिए हाथों में उठाया तो उन आलुओं के स्पर्श से मुझे वही एहसास
आया जो बचपन में आया करता था।जब मां आलू उबाल कर रख देती थी और कहती थी।जो इन आलूओ को छिलेगा उसी को आलू परांठा खाने को मिलेगा।
और हम सभी बच्चे एक साथ ही उन आलूओ पे टूट पड़ते थे।सच..! कितना हसीं वो दौर था।आज पुनः इन छोटे आलूओ की वजह से मैं अपने बचपन के दिनों को याद कर पाया और खूब इंजॉय किया..!!
किरण