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प्यार का इजहार
“प्यार में दूरियां”

“प्यार में ये दूरियां भी जरूरी है

माना प्यार का रंग लाल सही

पर इसमें काली अँधेरी रात भी जरूरी है।

अगर प्यार सच्चा हो तो

उतना ही चटक प्यार का रंग हो जाता है।

जितनी अधिक दूरियां हो जाती है।

हर पल उसकी यादों में खोया दिल

ना जाने किस पल को याद कर उनके प्यार में

गालों को शर्म से सुर्ख लाल कर जाता है।”

“अब बोल वाह… वाह…”सुजाता ने अपनी सहेली निशा को ये कविता सुनाते हुए कहा

आज सुबह से ही उदासी के गहरे काले बादलों ने निशा को घेर रखा था ।निशा ने बहुत मुश्किल से आँसुओं की घनघोर घटा को बरसने से रोक रखा था ।

कल उसके बचपन के दोस्त राजीव ने उससे अपने प्यार का इजहार किया। निशा ने उसे मना कर दिया । ये कहते हुए की वो उससे प्यार नही करती। जिसे सुनकर राजीव वहाँ से चला गया। लेकिन उसे आज सुबह जब पता चला कि राजीव ये शहर छोड़कर ही चला गया है। तो उसने उसे फोन लगाया । लेकिन पहली बार राजीव ने उसका फोन नहीं उठाया ना ही उसके मैसेज का कोई जवाब ही दिया। सुबह से शाम हो गयी निशा को मोबाइल देखते देखते लेकिन उसकी कोई खबर नही थी।

आज उसे ऐसा लग रहा था आँसूओ की बाढ़ पर बांध बांधना उसके बस की बात नहीं थी ।

राजीव के साथ बिताए इतने सालों में पहली बार हुआ है ऐसा , जो इतने दिन की जुदाई से निशा का पाला पड़ा था ।

उसे याद आ रहे थे बहुत सारे पिछले बचपन से जवानी तक गुजर गये हर वो दिन । जब उसके लिए सिर्फ राजीव का साथ होना ही काफी होता था।

उदासी और अकेलेपन ने मिलकर राजीव के साथ बिताए हुए इन्द्रधनुष के सारे रंग उसे दिखाए।

तभी फोन की गैलरी में अचानक से एक पुरानी तस्वीर सामने आ गई। जहाँ निशा और राजीव एक साथ थे और साथ में था गहरे प्यार का प्रतीक सुर्ख लाल रंग का गुलाब और टीवी में गूंज रहा था यह गीत

“दिल का दरिया बह ही गया,इश्क़ इबादत बन ही गया,खुद को मुझे तू सौंप दे,मेरी ज़रूरत तू बन गया”

“अब यहीं बैठी रहना और सुनती रह गाने ,जब बोलना था तब तो मना कर दिया, अब मुँह बनाकर बैठने से क्या होगा।” झूठमूठ का उलाहना देते हुए बोली ।

“अच्छा सुन चल कॉफी पीने चलते है?”

“नो..नो…।”