इतिहास के पन्नों से,
First Female Doctor Of India,
न्यूयॉर्क के पकिप्सी में एक कब्रिस्तान में एक हेडस्टोन पर लिखा है- आनंदीबाई जोशी MD शिक्षा के लिए भारत छोड़ने वाली पहली ब्राह्मण महिला ।
आनंदीबाई की 153वीं जयंती पर गूगल ने भी डूडल बनाया था। दूरदर्शन ने भी उनके जीवन पर आधारित एक धारावाहिक प्रसारित किया। वहीं महाराष्ट्र सरकार, उनके नाम पर एक स्वास्थ्य संबंधी फेलोशिप चला रही है। ये सभी सम्मान आनन्दी गोपाल जोशी की विरासत और महत्ता को दर्शाते हैं। उन्हें पश्चिमी चिकित्सा में डिग्री हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला माना जाता है।
आंनदीबाई का जन्म 1865 में ठाणे जिले के कल्याण में जमींदारों के एक रूढ़िवादी मराठी हिंदू परिवार में हुआ था। 9 साल की उम्र में उनकी शादी एक विदुर के साथ कर दी गई थी। आंनदी से उम्र में लगभग 20 साल बड़े उनके पति गोपालराव जोशी काफी प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे। यह उनकी सोच और समर्थन ही था, जिसकी वजह से आंनदी को विदेश जाकर चिकित्सीय शिक्षा प्राप्त करने वाली देश की पहली महिला डॉक्टर होने का गौरव प्राप्त हुआ।
आजादी से पहले, भारत में उचित चिकित्सीय देखभाल हर किसी को उपलब्ध नहीं थी, जिसका खामियाजा आंनदी को भुगतना पड़ा था। इलाज के अभाव में उनके 10 महीने के बेटे की मौत हो गई थी। उस समय उनकी उम्र 14 साल थी और उन्हें अथाह पीड़ा से जूझना पड़ा था।
सन् 1883 में कल्याण, अलीबाग और कोल्हापुर के महाराष्ट्रीयन शहरों में एक डाक क्लर्क के रूप में सेवा देने के बाद, गोपालराव को पश्चिम बंगाल के सेरामपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद, आनंदी ने अमेरिका की तरफ रुख किया और दुनिया के पहले महिला मेडिकल कॉलेज, पेन्सिलवेनिया मेडिकल कॉलेज (फिलाडेल्फिया) के अधीक्षक को एक मार्मिक पत्र लिखा।
कुछ समय बाद, आनंदीबाई ने उसी कॉलेज में एडमिशन लिया। कलकत्ता में, न्यूयॉर्क जाने से ठीक पहले आंनदी ने सेरामपुर कॉलेज हॉल में एक सार्वजनिक सभा को भी संबोधित किया था, जिसमें उन्होंने विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करने के अपने फैसले को सही ठहराया।
अधीक्षक को लिखे पत्र और सभा में बोलते हुए आनंदी ने कई कारणों का विस्तार से वर्णन किया कि वह विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई क्यों करना चाहती हैं। उनके इस फैसले ने समाज को उनके विरुद्ध ला खड़ा किया था। उन्हें और उनके पति को समाज की काफी प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। लोग उनके इस फैसले को एक सामाजिक कलंक बता रहे थे। इसके जवाब में तब आंनदी ने कहा था, “मैं एक हिंदू महिला डॉक्टर बनकर, लोगों की...
न्यूयॉर्क के पकिप्सी में एक कब्रिस्तान में एक हेडस्टोन पर लिखा है- आनंदीबाई जोशी MD शिक्षा के लिए भारत छोड़ने वाली पहली ब्राह्मण महिला ।
आनंदीबाई की 153वीं जयंती पर गूगल ने भी डूडल बनाया था। दूरदर्शन ने भी उनके जीवन पर आधारित एक धारावाहिक प्रसारित किया। वहीं महाराष्ट्र सरकार, उनके नाम पर एक स्वास्थ्य संबंधी फेलोशिप चला रही है। ये सभी सम्मान आनन्दी गोपाल जोशी की विरासत और महत्ता को दर्शाते हैं। उन्हें पश्चिमी चिकित्सा में डिग्री हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला माना जाता है।
आंनदीबाई का जन्म 1865 में ठाणे जिले के कल्याण में जमींदारों के एक रूढ़िवादी मराठी हिंदू परिवार में हुआ था। 9 साल की उम्र में उनकी शादी एक विदुर के साथ कर दी गई थी। आंनदी से उम्र में लगभग 20 साल बड़े उनके पति गोपालराव जोशी काफी प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे। यह उनकी सोच और समर्थन ही था, जिसकी वजह से आंनदी को विदेश जाकर चिकित्सीय शिक्षा प्राप्त करने वाली देश की पहली महिला डॉक्टर होने का गौरव प्राप्त हुआ।
आजादी से पहले, भारत में उचित चिकित्सीय देखभाल हर किसी को उपलब्ध नहीं थी, जिसका खामियाजा आंनदी को भुगतना पड़ा था। इलाज के अभाव में उनके 10 महीने के बेटे की मौत हो गई थी। उस समय उनकी उम्र 14 साल थी और उन्हें अथाह पीड़ा से जूझना पड़ा था।
सन् 1883 में कल्याण, अलीबाग और कोल्हापुर के महाराष्ट्रीयन शहरों में एक डाक क्लर्क के रूप में सेवा देने के बाद, गोपालराव को पश्चिम बंगाल के सेरामपुर में स्थानांतरित कर दिया गया। इसके बाद, आनंदी ने अमेरिका की तरफ रुख किया और दुनिया के पहले महिला मेडिकल कॉलेज, पेन्सिलवेनिया मेडिकल कॉलेज (फिलाडेल्फिया) के अधीक्षक को एक मार्मिक पत्र लिखा।
कुछ समय बाद, आनंदीबाई ने उसी कॉलेज में एडमिशन लिया। कलकत्ता में, न्यूयॉर्क जाने से ठीक पहले आंनदी ने सेरामपुर कॉलेज हॉल में एक सार्वजनिक सभा को भी संबोधित किया था, जिसमें उन्होंने विदेश जाकर डॉक्टरी की पढ़ाई करने के अपने फैसले को सही ठहराया।
अधीक्षक को लिखे पत्र और सभा में बोलते हुए आनंदी ने कई कारणों का विस्तार से वर्णन किया कि वह विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई क्यों करना चाहती हैं। उनके इस फैसले ने समाज को उनके विरुद्ध ला खड़ा किया था। उन्हें और उनके पति को समाज की काफी प्रताड़ना का सामना करना पड़ा। लोग उनके इस फैसले को एक सामाजिक कलंक बता रहे थे। इसके जवाब में तब आंनदी ने कहा था, “मैं एक हिंदू महिला डॉक्टर बनकर, लोगों की...