...

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क्यू?
देव दासी और देव का संवाद
हर सुबह की भाती जब प्रभा और उषा श्री के कमरे में उसे जगाने पहुंची तो वो हतप्रभ रह गई, श्री वहा अकेले बैठे किसी से बाते कर रही थी।
श्री : ये न्याय नहीं हैं, मुझे ये स्वीकार्य नहीं, मैं नहीं मानती इस कानून को….…
वो इतना कह शांत होगायी मानो कुछ सुनने लगी हो।
तभी एक आवाज़ आई ।
आवाज़: हां मुझे मालूम है कि तुम्हे ये गलत लग रहा हैं मगर एक बार और सोचो क्या मैंने तुम्हे यहां बुलाया है? या क्या सच में तुम मेरी सेवा करती हों? नहीं ना तो तुम मेरी दासी कैसे हो सकती हो??
ये आवाज़ कमरे के किसी अनजान कोने से आती लग रही थीं मगर उसकी बाते श्री के इलावा किसी को समझ नहीं आ रही थी और इसको भी केवल अर्थ का भान था यथार्थ का नहीं।
श्री: पर उषा तो कहती की हम देव दासियां हैं, क्या वो झूठ कहती...