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जैसी करनी वैसी भरनी - रंजन कुमार देसाई


" ईश्वर की लाठी चलती हैं तो आवाज नहीं आती . "

रोमेश की कही हुई बात शिव शंकर के कानो में गूंज रही थी. लुधियाना सिटी अस्पताल में जख़्मी हालत में, मैली चादर वाले बिस्तर पर पडा अपने मौत की घड़िया गिन रहा था. समय की जोरदार थप्पड़ ने उसे पलभर में आसमान से जमीन पर पटक दिया था.

विश्वास भंग होने की स्थिति में रोमेश ने शिव शंकर को तीखे तमतमते शब्दों के चाबखे मारे थे :

" मैंने यह पैसा एक भिखारी को दान कर दिया हैं.

एक आम स्तर के आदमी ने शिव शंकर को पलभर में करोड़पति की जमात से उठाकर निम्न कक्षा में रख दिया था. उस की खुद्दारी को गहरी चोट पहुंचाई थी. अपने मुलाजिम को सर चढ़ाकर, उस की बातों पर विश्वास कर के अपनी ही बर्बादी को आमंत्रित किया था. रोमेश के हक्क का पैसा हजम कर गया था. उस की बुरी नियत का अंदाजा मिलते ही रोमेश गुस्से से पागल हो गया था.

शिव शंकर के भीतर पाप समाया था. वह एक या दूसरे बहाने रोमेश को टालता रहता था.

गुजराल एक मुलाजिम था. दूसरे अर्थ में कहो तो उस का चमचा - हिज मास्टर वोईस था. अपने मालिक की बातों का पुन : प्रसारण करता था. रोमेश इस बात से परिचित था. उस ने चालाकी कर के अपने मालिक का ब्रेन वोश किया था. उसी की वजह से धंधाकिय रिश्ते के तार टूट गये थे. फिर भी रोमेश धैर्य की ऊँगली थामे बैठा था. लेकिन इंतजार की भी कोई सीमा, मर्यादा होती हैं.

पिछले कई दिनों से गुजराल और शिव शंकर चूहें बिल्ली का खेल खेल रहे थे. उस का एहसास होने पर रोमेश परेशान हो गया था.

इस हालत में वह लगातार शिव शंकर को फ़ोन करता था. लेकिन वह फोन पर आता ही नहीं था. बहाने बनाकर टाल देता था. एक घंटे के अंतराल में उस ने छः बार फोन किया था.

एक बार उस की बीवी ने फोन उठा कर कहां था. ' वह खाना खा रहे हैं. आप गुजराल से बाते कीजिये. '

यह सुनकर रोमेश अपना आपा खो बैठा था. उस ने साफ कह दिया था :

" मैं गुजराल को नहीं पहचानता! मैं उस से बात नहीं करूँगा. "

" वह हमारा ही आदमी हैं. "

" मुझे आप के मुलाजिम से बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं!! "

दोबारा फोन लगाया तो नया बहाना पेश किया गया :

" मेहमान के साथ चक्कर लगाने गये हैं. "

आख़िरकार, पराजित होकर उस ने गुजराल की दाढ़ी में हाथ डाला था.

पहले तो उस ने पैसे न देने के कई बहाने पेश किये थे. रोमेश ने उसे सीधे हाथ झपट में लिया तो वाह फालतू बातों करने लगा. उस की नियत का पता चलते ही रोमेश की कमान छटक सी गई थी. उस ने गुजराल पर गाली प्रहार शुरू किया तो अहम भंग हो जाने की स्थिति में वह निचली पायरी पर उतर आया :

" आप के पैसे नहीं मिलेंगे. आप को जो करना हैं वह कर लो! "

इतना सब कुछ होने के बावजूद रोमेश ने फोन पर शिव शंकर का फोन पर संपर्क करना जारी रखा था.

एक बार फिर उस की बीवी ने फोन उठाया था. और वही जवाब दिया था : " वह फेक्टरी गये हैं! "

रोमेश शिव शंकर के सिवा किसी से बात करना नहीं चाहता था और वह फोन पर भी आने से कतराता था. और गुजराल नालायकी की सारी हदे पार कर चूका था.

उस ने शिव शंकर की बीवी को अपील की थी :

" शिव शंकर जी को कहिये. मेरी तबियत ठीक नहीं. और पैसों की सख्त जरूरत हैं. मैं अपना रिश्ता क़ायम रखने के लिये बिनती कर रहा हूं. "

उस की बीवी ने रोमेश को विश्वास दिलाया था.

लेकिन यह बात पोथी के बेंगन जैसी साबित हुई थी.

फिर कुछ दिन बाद रोमेश ने फोन पर उस से बातें की थी. उस की आवाज कुछ बदली हुई लग रही थी. वह शायद मुंह पर रुमाल रखकर बात कर रहा था.

" ओरिजिनल पेपर्स भेज दो. मैं आप का पेमेंट कर दूंगा
. मैं किसी के पैसे बाकी नहीं रखता हूं. "

न जाने क्यों रोमेश को उस की बातों में कोई विश्वास नहीं हो रहा था. उस के लिये गंभीर समस्या थी. फिर भी उस ने शिव शंकर पर विश्वास कर के पेपर्स भेज दिये थे.

फिर भी वह नामुकर हो गया था. उस ने अपना वादा नहीं निभाया था. पेपर्स मिलने के बाद वह बदल गया था. सालों पुराना रिश्ता एक ही गवाही देता था. वह अपनी जबान का पक्का था. लेकिन गुजराल के आगमन के बाद वह पूरा बदल गया था. गुजराल ने ना जाने क्या जादू किया था!

वादा ना निभाया तो रोमेश ने फिर उस का संपर्क करने की लगातार कोशिश की थी. लेकिन फिर वही रफ्तार वाली बात थी. वह रोमेश को टालता ही रहता था. उस की धैर्य शक्ति जवाब दे गई थी. उस ने शिव शंकर के बेटे के जरिये मेसेज दिया था :

" मैंने यह पैसे एक भिखारी को दान कर दिये हैं. "

रोमेश एक पत्रकार था. शब्दों के घाव कभी नहीं मिटते.. यह बात अच्छी तरह से जानता था. इस लिये उस ने शिव शंकर के दिलों दिमाग़ पर शब्दों के जरिये हथोड़े जैसे वार किये थे..

वह जानता था शब्दों के घाव शिव शंकर को सदैव तकलीफ देता रहेगा. एक संवेदनशील इंसान अपने मतलब के लिये फंदेबाज, बदमाश गुजराल की लपेट में फ़स गया था.

मानवी चाहे लाख धनवान क्यों न हो, समाज में उच्च स्थान पर पहुंच गया हो वह कोई उसे ' भिखारी ' कहे यह बात कभी नहीं झेल पाता. और शिव शंकर अपवाद नहीं था.

' भिखारी' शब्द उस के अंतर के भीतर घुस कर उसे सतत पीड़ा दे रहा था.

स्वमान भंग होने की स्थिति में उस ने गुस्से में रिसीवर जमीन पर फेंक दिया था. फिर भी ' भिखारी ' शब्द उस के दिमागी कम्प्यूटर में बराबर फीड हो गया था. कोई भी की को हाथ लगाने से एक ही शब्द सामने आता था:

' भिखारी!! '

उन्ही दिनों रोमेश काम के सिलसिले में लुधियाना गया था. उस वक़्त उस ने गुजराल की एक झलक देखी थी.. शिव शंकर ने उस का परिचय करवाया था..

" अभी आप को हर काम के लिये उसी का संपर्क करना होगा. "

यह एक औपचारिकता थी जिस को रोमेश ने सहज स्वीकार लिया था.

उस ने दुबले पतले तीस वर्षीय गुजराल के साथ व्यवहारिक तोर पर हाथ मिलाया था. उस ने गुजराल को शुभकामनायें भी दी थी. लेकिन न जाने क्यों? रोमेश के दिल में पहली नजर में उस को लेकर कुछ संदेह हुआ था. वह उसे पसंद नहीं आया था!! उस के दिमाग़ में असलामती के भाव जगे थे. क्या शिव शंकर का काम छूट जायेगा?

उस की नियुक्ति के बारे में खुद शिव शंकर ने सफाई दी थी.

" मेरी वाइफ के गांव का पड़ोसी हैं! इस क्षेत्र में काफ़ी जानकारी एवम अनुभव हैं. रातों रात कंपनी को ताला लग जाने से भरी जुवानी में घर में बैठने की घड़ी आ गई थी..
इस हालात में बीवी की सिफारिश पर मैंने उसे मेरी कंपनी में नियुक्त किया हैं. "

रोमेश सतत दौड़ भाग कर के सख्त फील्डिंग कर के सरकारी दफ्तरो का चककर खाकर सारे पैसे रिकवर करता था ओर बदले में 1% कमिशन पाता था.

रोमेश ने बड़ी वफादारी से अपनी ड्यूटी निभाई थी. कभी शिव शंकर को शिकायत का मौका नहीं दिया था. वह भी काम संपन्न होते ही उस का पेमेंट भेज देता था. उस वक़्त रोमेश की नज़र में शिव शंकर के आदर्श बिज़नेस मेन की की इमेज थी.

रोमेश का एक दोस्त लुधियाना में रहता था. उस ने ही रोमेश को यह काम दिलवाया था. उसी ने ही गुजराल के बारे में चौकाने वाली जानकारी दी थी.

गुजराल ने अगली कंपनी में पैसों का गबन किया था और उसे खाली कर दिया था जिस के कारण कंपनी बंद करने की नौबत आई थी.

शिव शंकर भोला भला सीधा सरल व्योपारी था. उस की बीवी ने गुजराल के बारे में प्रमाण पत्र दिया था. और शिव शंकर ने आंखे बंद कर के गुजराल को काम पर रख लिया था.

वह क्या था? कोई उस की सच्चाई जानता नहीं था. उस बात का गुजराल को भ्रम था, गुमान था.

हकीकत में रोमेश उस की असलियत से वाकिफ था. वह जो काम करता था उसे गुजराल करना चाहता था. इस लिये उस ने शिव शंकर को रोमेश के खिलाफ भड़काना शुरू किया था. वह रोमेश की छुट्टी करना चाहता था. इस लिये वह उस की क़ब्र खोदने पर तुला हुआ था.

000000000 ( क्रमशः )
भाग - दूसरा

रोमेश 1% कमिशन चार्ज करता था. यह बात भी गुजराल को खटकती थी.

उस ने ही रोमेश को कहां था. " मार्किट में 0.75% कमिशन का भाव चलता हैं. हम आप को भी वही भाव से कमिशन देंगे. "

उस के खिलाफ रोमेश ने उस को साफ सुनाया था :

" मैंने अब तक सारे काम इसी भाव से किये हैं. कुछ अरसो तक काम करने के बाद भाव बढ़ाया जाता हैं तब तुम उलटी गंगा बहाने चले हो!! मैं उसी भाव से ही काम जारी रखूंगा.. "

गुजराल सोचता था. रोमेश को गरज थी. वह मान जायेगा. लेकिन उस का दाव उलट गया था. रोमेश की बात ने उस की बोलती बंद कर दी थी.

उस वक़्त उस नफफ्ट ने नया पैसा फेका था..

" तुम मुझे अपने हिस्से से 0.25% कमिशन मुझे दे दो.. मैं तुम्हारे सारे बिल्स 1% के हिसाब से पास कर दूंगा. कबूल हो तो बोलो. बाकी मेरा भतीजा ख़ुशी ख़ुशी 0.75% पर काम करने को तैयार हैं. "

" इस बारे में खुद शिव शंकर साब के साथ बात करूंगा. "

सुनकर गुजराल के छक्के छूट गये थे.

रोमेश एक पत्रकार था.. खुद शिव शंकर ने उसे बताया था.. उस घड़ी से गुजराल का जोश ठंडा पड़ गया था.

एक ख्यातनाम कंपनी की बुनियाद रोमेश ने हिला दी थी.. उस ने अपना पराजय स्वीकार लिया था..

फिर भी रोमेश को उस पर कतई भरोसा नहीं था. उस की नियत कब रंग बदलेंगी? यह कहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा था. वह आगे जाकर कुछ न कुछ बखड़जंतर खड़ा करने की पूर्णतः सम्भावना थी.

इसी लिये उस ने लिखित तोर पर 1% कमिशन का समर्थन चाहा था.

और शिव शंकर और गुजराल दोनों इस बात के लिये सहमत हो गये थे और लेखित रूप से समर्थन भी दे दिया था.

और रोमेश ने अपनी नई इनिंग्स का प्रारम्भ किया था.

वह लगातार आर्थिक रूप से तंग रहता था.

नया काम शुरू करने से पहले उस ने एडवांस की डिमांड की थी. उस के पहले भी उस में एडवांस मनी की मांग की थी और शिव शंकर ने उस के लिये कोई एतराज नहीं किया था. अधिकतर काम उस ने बिना एडवांस ही संपन्न किये थे..

लेकिन गुजराल ने उस के बारे में भी अपनी मनमानी करने का प्रयास किया.

क्या एडवांस मांगकर उस ने कोई बड़ा अपराध किया था?
एडवांस लेना मार्किट का आम चलन था. हर कोई वह देता था. लेकिन गुजराल किसी ना किसी बहाने उस की आड़े आता था.

तबियत की वजह से रोमेश ने बहुत सारे छोटे काम करना बंद कर दिया था. उस की इस परिस्थिति का भी गुजराल ने फायदा उठाने का मौका नहीं छोड़ा था.

बबुचक होने का ढोंग रचाने वाला गुजराल बहुत ही चालाक था. वह भल भले लोगो को शीशे में उतारने में माहिर था.

बाहर गांव की पार्टी का कोई बिना एडवांस नहीं करता था. यह बात गुजराल बखूबी जानता था. फिर भी रोमेश को सताने का कोई मौका जाया नहीं करता था. वह रोमेश को कसूरवार ठहराने पर तुला था जिस से वह अपने भतीजे को उस की जगह पर बिठा सके.

रोमेश इधर उधर से पैसे जमा कर के शिव शंकर के सारे काम तमाम करता था. वह गुजराल को कमिशन में कोई हिस्सा देना नहीं चाहता था. तो उस ने गंदी राज नीति का सहारा लेकर उसे परेशान करने का नया ड्रामा जारी किया था.

उस की तबियत का फायदा उठाने में उस ने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी.

पैसा नहीं मिलने पर रोमेश आक्रमक हो गया था. उस का कमजोर दिल ऐसी स्थिति बर्दास्त करने के लिये सक्षम नहीं था. उस ने फोन पर ही गुजराल को झाटक दिया था : जिस को लेकर उस ने रोमेश के खिलाफ शिवशंकर की बीवी के कानो में जहर उगल दिया था. बीवी ने गुजराल की तरफदारी की तो क्या चाहिए था?

" साला! बदमाश!! तुम जैसा खुदगर्ज और शैतान आज तक दूसरा कोई नहीं देखा. तेरी सारी पोल मैं खोल दूंगा. दुनिया के सामने नंगा कर दूंगा. "

शिव शंकर की मा को गुजराल और उन की बहू के बीच के अवैध रिश्तो के बारे में पता चल गया था. उन्होंने रोकने का प्रयास किया तो दोनों ने मिलकर उन को मौत के घाट उतार दिया था.

रोमेश सब कुछ जानता था. उस ने शिव शंकर को सब कुछ बता दिया था.. उस ने क्रोधित होकर गुजराल पर जान लेवा हमला किया था और culpable homicide के जुर्म में उन को जैल हो गई थी.

रोमेश के पास पैसे भूल जाने के सिवा अन्य कोई विकल्प नहीं बचा था.

भगवान ने गुजराल के अपराधों की सजा दे दी थी और शिव शंकर के लिये उम्र कैद की सजा मुकरर हो गई थी.

और कल का हिरो आज झीरो बनकर रह गया था.

गुजराल में ऐसा क्या था? जो उस ने शिव शंकर का धंदा ही नहीं बल्कि उस के परिवार को भी तबाह कर के रख दिया था!!

एक हादसे में शिव शंकर को सर पर गहरी चोट लगी थी. और लगातार उसे दर्द होता था. उस पर कोई पैन किलर असर नहीं कर रही थी..

अतीत की यादें दुश्मन बन कर हर पल उस के दिलों दिमाग़ पर आरुध हो जाती थी. वह दिनों तक चैन की नींद नहीं सो पा रहा था.

उस की बीवी की प्रेम लीला लगातार उस की आँखों के सामने तैरती रहती थी. उस ने अपनी बीवी श्री लता को गुजराल की बाहों में रंगरलिया मनाते हुए देखा था. उस ने अपनी बीवी को सब कुछ दिया था. सारा प्यार न्योछावर किया था. फिर भी उस ने बेवफाई की थी. यह बात वह झेल नहीं पा रहा था.

इस हालत में उस ने जैल में ही ख़ुदकुशी कर के अपने आप को मिटा दिया था.

मरने से पहले रोमेश की बात उस के कानो में दस्तक दे रही थी :

" जैसा करोंगे वैसा ही पाओगे. "

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