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परचुन की दुकान का फिलाॅसफर
कायनात कह लिजीए या Universe कह लिजीए... उसकी एक विशेषता है .. वह गाहे-बगाहे मानों हमें सरप्राइज देने का शौक रखता है।

आपके सामने कोई ऐसी हस्ती या परिस्थिति ला खड़ा कर देता है कि अचानक आपकी सारी धारणाएं, सारे theories मानो ताश के पत्तों के महल के समान क्षण भर में ढेर हो जाते हैं। Clean bold !

अपील की कोई गुंजाइश ही नहीं ।
मानो कह रहा हो " पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त" ! अभी मेरे कई आयाम देखने है समझने है ।

और एक दम से नजरिया पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाता है... शायद यही तरीका होगा कायनात का, सबक सिखाने का, हमारे उलझनों को , दुविधाओं को सुलझाने का, संकीर्णता से पूर्णता की ओर ले जाने का...

मेरे पिछले लेख 'होड़' में मैं कुछ ऐसे लोगों के बारे में लिख चुका हूं जिन्हें अपने सिवा और कुछ भी दिखाई नहीं देता, उनका ऐसा मानना है कि यह विश्व उन्हीं के लिए बनाया गया है और बाकी सभी लोग उनके उपयोग की वस्तुएं मात्र है । किसी भी तरह उनका...