...

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सुनो अजनबी
सुनो मेरे अजनबी...
खोया हुआ समय कभी वापस नहीं आता है. हम ज़िंदगी में आगे बढ़ रहे हैं... उम्र के साथ परिवर्तनों को अपनाते जा रहे हैं... वक़्त को हालात को समझते हुए खामोशी से कहीं कम बोलते हुए सबको साथ लेकर चलने की कोशिश है.. अब वक़्त ने सब्र और किसी से उम्मीद ना रखना बहुत अच्छी तरह सिखा दिया है.

किसी से कोई गिला नहीं.. किसने कितना सताया परवाह नहीं.. सब रब पर छोड़ दिया.. बस एक टीस है कि तेरे मेरे बीच गलतफहमियाँ फैलायी गयी.. मैंने उन सबको अपने बीच नहीं आने दिया लेकिन तूने उन सबको हमारे बीच आने की इजाजत दे दी.

बस यही दुःख किसी पर भरोसा नहीं करना है सिखा गया है. शायद तू उतना चाह ही नहीं पाया..तभी तो इतने इल्ज़ाम मेरे सिर कर...