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एक मुलाक़ात ( पार्ट 5)
विपिन परेशान सा अपने कमरे में इधर उधर घूमने लगा, उसे कुछ समझ ही नहीं आया की क्या करे अब आगे। जिसे वो पसंद कर बैठा था, वो तो असल में है ही नहीं। उसने अपने एक दोस्त को सारी बात बताई और उसके कहने पर ये नौकरी छोड़ दी।
अपने घर जाकर भी उसका मन कहीं भी किसी भी काम में नहीं लगा। बड़ी मुश्किल से उसको एक दूसरे स्कूल में अच्छी सी नौकरी मिली घरवालों के कहने पर उसने उस नौकरी को हांँ कर दी।
कुछ दिनों बाद विपिन अपने घर में अकेला था, रात के करीब 11 बजे थे वो अपने कमरे में अकेला बैठा हुआ था तभी उसको फिर आहट आईं जैसे कोई और भी है वहाँ। वो अपने कमरे से उठकर बाहर गया पर बाहर कोई नज़र नहीं आया, वो वापस अपने कमरे में आया तो वहाँ सुरुचि खिड़की के पास खड़ी थी।
एक पल के लिए विपिन सुन्न सा हो गया फिर सुरुचि के मुस्कुराने पर वो भी मुस्कुरा गया।कुछ देर तक दोनों शांत खड़े एक दूसरे को देखते रहे फिर सुरुचि बोली -"कैसे हो?"
विपिन - " ठीक हूंँ।" इससे ज्यादा उससे कुछ कहा भी नहीं गया।
"क्यों आयीं तुम यहांँ ??" विपिन ने प्रश्न किया।
"तुमसे मिलने, तुम्हें देखने। पर्शों मेरी आत्मा की शांति का पाठ है, उसके बाद में हमेशा के लिए चली जाऊंगी। तो बस एक आखरी बार तुमसे मिलने आयी हूंँ।" सुरुचि बोली।
थोड़ी देर तक फिर दोनों ख़ामोशी में बैठे एक दूसरे को देखते रहे। फिर वापस विपिन ने ही बात करनी चालू करी, थोड़ी देर यहांँ वहाँ की बात करने के बाद सुरुचि जाने लगी। इस बार सुरुचि हमेशा के लिए जा रही थी, दुबारा किसी और रूप में जन्म लेने के लिए। विपिन ने ना चाहते हुए भी उसको वादा कर दिया कि वो ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाएगा उसको भुला देगा।
घरवालों के कहने पर उसने एक जगह शादी भी कर ली। शादी की पहली ही रात उसने अपनी पत्नी (रत्ना) को अपने अतीत के बारे में सब कुछ बताया और थोड़ा वक़्त मांगा। रत्ना ने उसको समझते हुए उसको थोड़ा वक़्त दिया, रत्ना के प्यार, घर की ज़िम्मेदारी और वक़्त के साथ विपिन आगे बढ़ गया। और एक नई ज़िंदगी की शुरुआत कर सका।
© pooja gaur