प्रेम में औकात...प्रेम की औकात से बड़ी कैसी..!!
यूं कहें तो मोहब्बत और औकात का कोई रिश्ता नहीं होता ... लेकिन आजकल अगर आप किसी से बोलते हो कि मुझे तुमसे प्यार हो गया तो...उसका सबसे पहले यही सवाल होता है... तुम्हारी औकात क्या है..??? क्या तुम प्रेम कर सकते हो..?? पहले अपनी पहचान बना लो, कुछ कर लो अपने लिए तब आना मेरे पास, मैंने भी सुनी हैं ये बातें.. कि पहले पहचान बनाओ,जितना मां बाप ने तुम्हारे लिए किया है उनका जरा सा भी उन्हें लौटा पाओ फिर सोचना... आज तक किया कुछ नहीं बस इनको प्रेम करना है... तो कभी मौन हो जाती हूं ये सोचकर कि ये सच ही तो है कि मैंने अभी तक किया ही क्या...मेरी कोई पहचान कहां है, शायद मैं प्रेम के लायक ही नहीं हूं,....लेकिन जब प्रेम के बारे में सोचती हूं और कृष्णा को याद करती हूं तो सामने वाले पर बहुत गुस्सा आता है... कि यार प्रेम के भी कोई नियम हैं, ये तो मैंने कहीं नहीं पढ़े,ना रामायण में,ना गीता में ,और ना ही शिव पुराण में, कहीं भी तो ये नहीं बताया गया कि प्रेम करने के लिए क्या होना आवश्यक है क्या नहीं,प्रेम कौन कर सकता है कौन नहीं,ऐसा तो कुछ भी नहीं कहा गया है फिर ये इंसान ऐसा क्यों बोल रहा है... थोड़ा खीझ भी आती है लेकिन फिर शान्त हो जाती हूं ये सोचकर कि इसने प्रेम के इसी रुप को अनुभव किया है... शायद इसने जो प्रेम पाया... उसमें स्वार्थ था, इसने जो प्रेम ग्रहण किया उसका उद्देश्य होगा,उसका कारण होगा, इसमें इसकी कोई गलती नहीं है, लेकिन मैं तो बिना किसी शर्त के इसको प्रेम करती हूं ना तो मेरा प्रेम इसकी बातों से प्रभावित नहीं होगा, ये मुझसे प्रेम करे या ना करे मैं नहीं भटकूंगी.... अपने प्रेम को प्रेरणा बनाकर, उसी प्रेम कोे आत्मा की शक्ति बनाकर अपने कर्मपथ पर बढ़ती रहूंगी... वो मेरी जिंदगी का हिस्सा रहे या ना रहे किन्तु उसका प्रेम सदैव मेरी उड़ान का हिस्सा रहेगा,मेरी मंज़िल का हिस्सा रहेगा..
मैंने अपनी इस प्रेम यात्रा में इतना जरूर सीखा है कि प्रेम में तुम अकेले ही चलते हो बस अपने प्रेम को अपनी ताकत बनाना है या उस इंसान को अपनी कमज़ोरी ये तुम पर निर्भर करता है... अगर तुम्हारा प्रेम तुम्हारी ताक़त है तो तुम सफ़ल हो,और यदि वो प्रेमी तुम्हारी कमज़ोरी तो तुम कभी सफ़ल नहीं हो सकते.. इसलिए हमेशा इंसान की आत्मा से, उसके अंदर के प्रेम से प्रेम करो किसी इंसान की बातों से, उसके कर्मों से नहीं,बस उसके कर्म यदि ठीक नहीं हैं तो उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहो...ये हमारा कर्त्तव्य है..!!
#मेरीप्रेमयात्रा
#आकांक्षामगनसरस्वती
© ~ आकांक्षा मगन “सरस्वती”
मैंने अपनी इस प्रेम यात्रा में इतना जरूर सीखा है कि प्रेम में तुम अकेले ही चलते हो बस अपने प्रेम को अपनी ताकत बनाना है या उस इंसान को अपनी कमज़ोरी ये तुम पर निर्भर करता है... अगर तुम्हारा प्रेम तुम्हारी ताक़त है तो तुम सफ़ल हो,और यदि वो प्रेमी तुम्हारी कमज़ोरी तो तुम कभी सफ़ल नहीं हो सकते.. इसलिए हमेशा इंसान की आत्मा से, उसके अंदर के प्रेम से प्रेम करो किसी इंसान की बातों से, उसके कर्मों से नहीं,बस उसके कर्म यदि ठीक नहीं हैं तो उसके लिए ईश्वर से प्रार्थना करते रहो...ये हमारा कर्त्तव्य है..!!
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© ~ आकांक्षा मगन “सरस्वती”