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महीने का आखरी दिन
आज महीने का आखिरी दिन है,
और श्रीकृष्ण कुछ कह रहे हैं

यज्ञशिष्टाशिनः सन्तो मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषैः।भुञ्जते ते त्वघं पापा ये पचन्त्यात्मकारणात्।। गीता 3.13

यज्ञ को अपना सर्वस्व समर्पित कर दो। फिर अगर कुछ बच जाए तो ही उसका व्यक्तिगत उपयोग करना।

श्रीकृष्ण समझा गए कि हमारे जीवन पर पहला अधिकार सत्य का होना चाहिए। तन मन धन - सब संसाधन - सबसे पहले मुक्ति के यज्ञ में अर्पित किए जाएँ, उसके बाद ही उनका व्यक्तिगत इस्तेमाल हो। श्रीकृष्ण कह रहे हैं कि यज्ञ का अर्थ है एक परम ऊँचे लक्ष्य को अपना सर्वस्व अर्पित कर देना। और जो लोग सिर्फ व्यक्तिगत कामनाओं की पूर्ति में ही अपने संसाधन लगाते हैं वे कष्ट ही पाते हैं।

आज महीने का आख़िरी दिन है। महीने भर आपने अनगिनत व्यक्तिगत कारणों पर पैसे खर्च किए होंगे। पूरा महीना आमतौर पर अपनी ही कामनाओं और सीमित कर्तव्यों का ख़्याल रखने में बीत जाता है। अपने छोटे व्यक्तिगत क्षेत्र से आगे किसी परम यज्ञ की व्यक्ति सोच ही नहीं पाता। कृष्ण इसी बात के विरुद्ध चेतावनी देते हैं।

तीस दिन तो ज़िंदगी की आम उलझनों में होम हो गए। पर आज एक इकत्तीसवाँ दिन बचा हुआ है। तीस दिन यज्ञ में आहुति डालने का न ध्यान रहा, न फुर्सत। क्या आज इकत्तीसवें दिन चूक को ठीक करेंगे?

जन-जन तक सत्य, मुक्ति और वेदांत को पहुँचाने के लिए आपके सामने ही एक महायज्ञ चल रहा है। तीस दिन उसमें आहुति ना कर पाए तो ना सही। पर आज आख़िरी इकत्तीसवें दिन तो कुछ कीजिए।

कृष्ण बार-बार हमें चेताते हैं कि यज्ञ में आहुति किसी भी प्रकार के व्यक्तिगत भोग से पहले होनी चाहिए।
@Bhoor_Singh_raghav
© Bhoor_Singh_raghav