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जब आबे संतोष धन
एक राजा था जिसे अपने राज्य धन से अत्यधिक लगाव था। वह हर समय अपने राज्य और धन के लिए चिंतित रहता था। उसे ऐसा लगता था कहीं उसके शुभचिंतक ही उससे छल करके उसका राज्य और संपत्ति अपने कब्जे में ना कर लें। इस बात को लेकर वह काफी परेशान रहता था। वह कहीं आता जाता नहीं था।अपने महल और राज काज की देखभाल में ही अपना सारा वक्त गुजारता था।
सालों बीत गए राजा अपने नगर से बाहर निकला ही नहीं था। हर वक्त महल की चार दीवारी में बंद रहने और चिंता करने के कारण वो अस्वस्थ हो गया। एक दिन राजा के दरबार में एक साधु बाबा आए। राजा ने साधु बाबा का यथाचित सत्कार कर उन से बैठने का आग्रह किया और उनके यहां आने का कारण पूछा।साधु बाबा राजा के कुशल व्यवहार राज्य की उन्नति और खुशहाली देख कर राजा की ओर आकर्षित हुए और उनकी प्रशंसा करने लगे तथा अपने यहां आने का कारण भी बताया।साधु बाबा ने कहा राजन मैं तो तपस्वी हूं मुझे धन का क्या काम किंतु
अभी कुछ अति आवश्यक कार्य आ गया है। आपकी ख्याति सुनकर आपके पास चला आया हूं।अगर कुछ धन मिल जाते तो हमारी मदद हो जाती। राजा धन का नाम सुनते ही असहज हो गया। कहने लगे साधु महाराज कृप्या मुझे क्षमा करें। मैं आपको धन नहीं दे सकता।
अगर मैं धन दे दूंगा तो धनकोष खाली हो जाएगा।
फिर क्या महत्व रह जाएगा राजा और राज्य का..?
नहीं नहीं मैं नहीं धन दूंगा......
साधु बाबा आश्चर्य चकित रह गए राजा की बातें सुनकर
पहली बार ही किसी राजा ने किसी साधु को धन देने से मना किया होगा।
राजा की बातों से असहजता साफ प्रकट हो रही थी।
साधु बाबा ने कहा महाराज आप धन हमें मत दीजिए
मैं कहीं और से इंतज़ाम कर लुंगा किंतु अपनी चिंता का कारण तो हमें बताइए।साधु की बातें सुनकर राजा थोड़ा डर गया और कहने लगा आपको कैसे पता कि मैं चिंतित हूं।आपके माथे पे साफ लिखा है कि आप घोर चिंता में हैं।तब राजा ने अपनी चिंता का कारण उन्हें बताया।
साधु बाबा ने तब राजा को समझाया राजन ये शरीर नश्वर है।ये धन सम्पदा सब लोभ और चिंता के कारण है।
ये आज तो आपका है किन्तु कल किसी और का हो जाएगा। धन कभी स्थिर नहीं रहते। ये बहुत चंचल होते हैं। बिल्कुल पानी की तरह...!! और हमें अपने जीवन में
क्या चाहिए रोटी कपड़ा मकान औषधि इससे ज्यादा की तो हमें जरूरत ही नहीं है। अपने राज्य और धन की देख रेख करना एक राजा का कर्त्तव्य है। किंतु साधु-संतो की सेवा ना करना अपनी प्रजा का मदद ना करना ये उचित नहीं है। धन तो होते ही इसीलिए है कि जरूरतमंदों की मदद की जा सकें। इससे आपके धन के साथ साथ आपकी ख्याति और बढ़ेगी। और महाराज धन की चिंता बिल्कुल भी ना करें।अगर वो आपका है तो आपका ही रहेगा और अगर वो आपका नहीं है तो आप चाहें लाख कोशिश कर लें वो आपके पास नहीं टिकेगा....!
साधु की बातें सुनकर राजा की आंखें खुल गईं अब उसके चेहरे पर रंच मात्र भी चिंता नज़र नहीं आ रही थी।
अब वो पूरी तरह से संतुष्ट और आत्मबल से संपन्न लग रहें थे। फिर राजा ने साधु बाबा के लिए खजाने का द्वार खोल दिए और कहा महाराज आप अपने इच्छा अनुरुप
धन ग्रहण करें।राजा की दरियादिली देख कर साधु बाबा ने कहा "जब आबे संतोष धन सब धन धूरी समान"
किरण