...

6 views

मेरी उम्मीद ❣️🥺✍️
समझ नहीं आता जीवन में क्या हो रहा है जब-जब किताबें खोलते हैं अपने सपनों को पूरा करने की उम्मीद में हजारों सवाल दिमाग में आ जाते हैं कुछ जिम्मेदारियां हैं माता-पिता की उम्र हो रही है और हमारी तैयारी से नौकरी अभी तक हमारे हाथ नहीं लगी है हम कोशिश करते हैं लेकिन कोशिश कर करके कहीं ना कहीं हार जाने को दिल करता है अब किताबें खोलते हैं तो कुछ सवाल दिमाग में प्रकट होते हैं यह सवाल किताब में उभर कर आ जाते हैं और किताब के सवाल कहीं नीचे दब कर रह जाते हैं हम इन सवालों को सुलझाने में लगे रहते हैं कैसे होगा क्या होगा हो भी पाएगा कुछ पर विडंबना यह है कि हम कर कुछ नहीं सकते और इस समय जीवन इस तरीके से परीक्षा ले रहा है ऐसा लगता है दसों दिशाओं से घिर गए है 14 इंद्रियां शिथिल हो गई है जैसे मस्तिष्क नेकाम करना बंद कर दिया है ह्रदय वेदना और पीड़ा से भर सा गया है एकदम से अचानक से जीवन में कुछ परिवर्तन हुए हैं जिससे हृदय कहीं ना कहीं छलनी हो गया है अब समझ नहीं आता कि इस दर्द से तूफान से उबर पाएंगे या नहीं मेरी नजर में तूफान से बेरहम और बेशर्म कुछ नहीं होता ये न बता कर आता है और जब आता है तो कितना कुछ साथ ले जाएगा कुछ पता नहीं कई लोग अपने कच्चे मकान को पक्का कर रहे होते हैं कई लोग अपने मकान में छत डाल रहे होते हैं कई लोगों के मकान की छत टपकती होती है कई लोग घर की शुरुआत कर रहे होते हैं लेकिन इसे किसी पर रहम नहीं आता इसे शर्म नहीं आती की कहां जा रहा है और क्या लेकर जाएगा यह तूफान लुटेरा है खुशियों का उम्मीदों का सपनों का कई बार जिंदगी ऐसा तमाचा मारती है कि हम मुंह के बल गिरते हैं अब कंधों में जिम्मेदारियां आ गई है बड़े भी हो गए हैं मां-बाप बूढ़े हो रहे हैं एक तरफ नौकरी नहीं है एक तरफ दिलों दिमाग में सवाल घर कर रहते हैं कहानी हमारी कहानी अधूरी ना रह जाए हम मंजिल तक पहुंचते पहुंचते ना रह जाए मेरा दिल डरता है पल पल मरता है परंतु इस दिल की वेदना पीड़ा व्यथा को कौन समझेगा और कोई क्यों समझेगा क्या हम पूर्णतः किसी की वेदना पीड़ा को समझ पाते हैं नहीं कहीं ना कहीं हम सब सीमित है हम लोगों की एक सीमा है इसके बाद हम कहीं ना कहीं शिथिल पड़ जाते है मेरा मानना है शिथिल पढ़ता हुआ आत्मविश्वास इंसान का सबसे बड़ा शत्रु है इससे लड़ना बहुत मुश्किल है और आजकल मेरी इसी से लड़ाई चल रही है क्या होगा कैसे होगा कुछ नहीं पता बस कुछ है जो आगे बढ़ने से रोक रहा है कुछ है जो आगे बढ़ाने को कहता है अब उम्मीद लगाई है दुनिया जिस भी रूप में दुनिया रचने वाले को देखती हैं उनसे उम्मीद है वो महादेव हो, केशव हो ,या कोई और या कोई और जिस भी रूप में पूजा जाता है उन्हें हर तरफ मेरी नजर है हर तरफ मेरी उम्मीद है क्या अल्लाह क्या भगवान क्या ईसा मसीह क्या वाहे गुरु मेरी उम्मीद हर किसी से क्योंकि मन की व्यथा और वेदना पूर्णतया समझ पाना दुष्कर है और दुनिया रचने वाले के लिए कुछ भी दुष्कर नहीं ।


© SAKSHAT_AGYAT