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मंथन: मनोवेज्ञानिक दृष्टिकोण
समझ जब बढ्ने लगे तो दिमाग मनुष्य मे हावी हो जाता है, सब जानते हुए समझ्ते हुए भी मनुष्य ग़लत निर्णय के जाल मे उलझ ही जाता है फिर शुरू होता है मंथन... मंथन जो देवता और दानवो के बीच हूआ था....  लेकिन ये असुर सुर कौन है हमारी कल्पना या हमारे मन का संकेत.... फ्रायड ने सुमद्र मे डूबे बर्फ को मनुष्य के मन की तीनो अवस्थओं मे विभाजित कर दिया... पर शायद फ्रायड से पहले कुछ और बुद्धिजीवियों ने सागर मंथन को समझा कि मनुष्य के भीतर के सुर और असुर को बुराई और अच्छाई का प्रतीक कह दिया...  मनुष्य का मन 'समुद्र', विचार 'पर्वत', असमंजस 'नाग' और पर्वत (विचार) जिस कूर्म मे बैठा वो हमारे 'कर्म'....जो मथता है हमारे जीवन को.. 
हम कौन है, कहाँ से आए, क्या उद्देश्य ले़ कर आए, ज़िन्दगी का कर्ज़, सांस से अता कर कहां जाते है...  हम बस वंश वृद्धि हेतु तो सँसार मे नही आए....  हम स्वयम को जान सके इसिलिये आए| ख़ुद मे उलझे हम सत्य को भूलते जा रहे है और अदृश्य से जाल मे उलझते चले जाते है |


भरतीय संस्कृति मे अंको का विशेष महत्त्व रहा है, शरीर को नौ द्वारों का नगर बताया गया, जिसका अंत चार लोगो की सहायत से मरघट मे होता है, चार वेद चार युग जीवन का आधार|  333 करोड देवी देवता है, 108 उपनिषद, 18 पुराण, 18 अध्याय गीता मे कहे जाते है..  युग और वेद को मानव जीवन का आधार मान भी लिया जाए तो उपनिषद, पुराण, गीता.... इन सभी का योग 9  है तो क्या ये मात्र संकेत है जो शिक्षा देते है मोह त्याग की?? युग बदलते रहते है लेकिन मूल तत्त्व कभी नही बदलता, शरीर बदलता रहता है लेकिन आत्मा नही बदलती जो हर जन्म मे हमारे कर्मो को साथ लेकर चलती है| 

स्वयम को जानने का सबसे आसान तरीका खुद मे झांकना है जिसका सबसे बेहतर माध्यम ओम् का उच्चारण है| 
ओम् को संधि विच्छेद करे तो तीन भागों मे विभाजित होगा ओ, ई , म् | जिससे भीतर छुपा हमारा सच हमारे सम्मुख आए, हम खुद को समझ सके और अचेतन अवचेतन के विचारों से बाहर निक़ल चेतन रूप मे सँसार को देख सके, बिना भेदभाव के सब से मिल सके| 
बात चाहे समुद्र मंथन की हो या फ्रायड के विचारों की अग़र मानसिक द्वंद से बचना है तो स्वयम की वास्तविकता का ज्ञान होना नितांत आवश्यक है विचारों मे कुढ़ते रहेंगे तो मानसिक अस्वस्थता घर कर जाएगी,  जिस से मनोवेज्ञानिक विकार आसानी से घेर लेंगे.. मनुष्य हमेशा स्वयम से ही हारा है... 

ये समझ के प्रतीत होता है, हमारे पुर्वजो ने संकेतों का़ अच्छा् उपयोग किया,  जिसे हम शायद  कहानियों तक ही सीमीत रख पाए,  हमारे पुर्वजो ने हमे समझाने के लिये समुद्र मंथन का  उत्कृष्ट उदाहरण दिया, जिसमे अमृत्व उसे मिला जिसने खुद को समझा, आत्मा और परमात्मा के मिलन की अनुभूति की|  मायाजाल मे दानव उलझे रहे और अमृत जीत कर भी मद मे चूर अमृत हार गये, 

© कृतिका जोशी