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अध्याय 2
सहकारी बाड़
वर्ष 1970 विश्व विद्यालय रुड़की जुलाई के आसपास जब प्रथम वर्ष की कक्षाएं प्रारंभ हुई इंजीनियरिंग के प्राथमिक विषयों के साथ ह्यूमैनिटी के अंतर्गत अर्थशास्त्र भीएक विषय था।
एक दिन शिक्षिका महोदय ने कक्षा में वाद विवाद प्रतियोगिता आयोजित की विषय था पूंजीवाद वर्सेस समाजवाद। पूरी कक्षा में समाजवाद पर बोलने वाला मैं अकेला था।
नेहरू द्वारा प्रस्तावित सहकारी खेती का यथोचित ज्ञान मुझे था परंतु सहकारी खेती यहां आई नहीं और आती भी तो कदाचित सफल न होती क्योंकि जब निजी खेती में किसान आत्महत्या कर रहे हो तो सहकारी खेती का क्या हश्र होता।
परंतु सहकारी कृषि का एक क्षेत्र ऐसा है जिसका इस्तेमाल हम वर्तमान परिस्थितियों में अत्यंत ही किफायती तरीके से कर सकते हैं।
व क्षेत्र है सहकारी बाड़।
विगत दशकों में जंगली जानवरों नील गायों के भय से किसान कमाऊ खेती से व्रत होते जा रहे हैं।
निजी स्तर पर बाढ़ लगाना अत्यंत ही मंगा एवं देश के किसानों के लिए संभव नहीं प्रतीत होता है।
एक अमेरिकी अर्थशास्त्री एवं भविष्यवक्ता अल्विन टॉफलर ने अपने एक पुस्तक में लिखा है की छोटी जोत के बावजूद भी भारतीय कृषक अपने खेतों में बाढ़ नहीं लगा पाते।
यह प्रश्न मेरे दिमाग में विगत 20 25 सालों से घोस्ट आ रहा है।
यह भी बताते चलें की एक इंजीनियर होने के नाते मेरा प्रयास हमेशा कम से अधिक करने का रहा है।
खासतौर से स्वामी दक्षिणामूर्ति से मुलाकात के बाद जब उन्होंने मुझे इस विषय पर विश्वस्तरीय ज्ञान देने की कृपा बरसाए।
सरकारी बाढ़ ज्यामिति के एक
अत्यंत प्रारंभिक ज्ञान पर आधारित है।
कल्पना कीजिए की एक गांव में 100 किसान रहते हो तथा सबके पास एक एक हेक्टेयर की कृषि योग्य भूमि उपलब्ध हो।
एक हेक्टेयर का मतलब 100 मीटर * 100 मीटर होता है।
इस प्रकार प्रत्येक किसान को अपने खेत को बाल लगाने के लिए लगभग 400 मीटर निर्माण करना पड़ेगा।
अब अगर यही किसान एक समूह बनाकर पूरे क्षेत्र के चारों ओर एक बार का निर्माण करना चाहे तो इन्हें 1 किलोमीटर * 1 किलोमीटर के वर्गाकार क्षेत्र को 4000 मीटर बाड़ से घेरा जा सकेगा।
इस प्रकार सामूहिक स्तर पर यदि खर्च को बराबर बराबर बांटा जाए तो प्रत्येक किसान के हिस्से में केवल 40 मीटर बाढ़ का निर्माण ही आएगा।
यानी कि लागत में 10 गुने की कमी। मान लीजिए की लागत प्रति मीटर ₹100 आती है तो प्रत्येक किसान को केवल ₹4000 ही खर्च करना है।
यही बताना इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य है।
संलग्न चित्र संख्या दो में इसे समझाया गया है।