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"रहस्य के सबूत नहीं"
#WritcoStoryPrompt6
स्कूल से घर लौटते समय जामुन के पेड़ की टहनियों पर पके हुए जामुनों को देखकर उस दिन अन्य बच्चों के साथ मेरा जी भी ललचा गया। मैं तब कक्षा नौ में पढ़ता था। मेरे साथ छोटा भाई और गाँव के तीन और युवक स्कूल जाते थे। मैं अन्य बच्चों की तरह शरारती तो नहीं लेकिन पेड़ पर चढ़ने में उनसे बीस था। गाँव का कोई भी आम,अमरुद का पेड़ ऐसा न था जिसके पके फलों को मैंने न तोडा हो। इसलिए सभी ने मुझे जामुन के पेड़ पर चढ़ने को कहा। फ़िर देर किस बात की थी मैंने अपने बस्ते को एक किनारे रख दिया। हनुमान जी का नाम लेकर देखते ही देखते पेड़ की टहनियों पर झूलते हुए जमीन से क़रीब तीस फुट ऊँचाई पर पहुँच गया। पेड़ के नीचे विशाल नुकीले पत्थर मुझे देखकर जैसे मुझे चिढ़ा रहे थे।
        जिस डाल पर जामुन भरपूर मात्रा में थे मैं उस पर लपकता हुआ चढ़ गया। लेकिन जामुन अब भी मेरी पहुँच से बहुत दूर थे। मैंने पेड़ की डाल को ज़ोर से हिलाने की कोशिश की। मेरे इस प्रयास से मुश्किल से जामुन के बीस पच्चीस दाने नीचे गिरे। जिन्हें नीचे खड़ी वानर सेना ने नीचे गिरने से पहले ही उदरस्त कर दिया। नीचे खड़े जाम्बजों ने मेरा हौसला बढ़ाया और मैं पेड़ की टहनी पर रेंगता हुआ चार फ़िट और आगे बढ़ गया। वहाँ यह टहनी दो शाखाओं में बंट गई। मैंने एक शाखा को दोनों हाथों से पकड़ा और दूसरे पर चढ़कर उसे जोर-जोर से हिलाना शुरू कर दिया। इस बार बड़ी मात्रा में पके हुए जामुन गिरने लगे। नीचे से किसी साथी ने आवाज़ दी इस डाल को एक बार और हिला दो। मैंने पूरे जोर के साथ डाल को हिला दिया। लेकिन तभी जिस डाल पर मैं खड़ा था अचानक टूट गई। मैं दूसरी डाल को पकड़कर हवा में झूलने लगा। अब मेरे पास पवनपुत्र हनुमान का स्मरण करने के अलावा कोई अन्य उम्मीद शेष नहीं थी। नीचे विशालकाय पत्थर मेरे शरीर से मिलन की आस में प्रतीक्षारत थे। मेरी करीब आधा मिनट की कशमकश का नतीज़ा यह हुआ कि जिस डाल को मैंने पकड़ा था वह भी टूट गयी।
        भय से मेरी पलकें बन्द हो गई। मुझे मालूम था कि अब बचना मुश्क़िल है। लेकिन तभी वह घटना घटी जिसे एक रहस्य ही कहा जा सकता है। मैं जिस डाल पर खड़ा था वह टूटकर करीब पन्द्रह फुट नीचे एक मोटी टहनी पर अटक गई। जिस टहनी को मैंने हाथों से पकड़ा था उस पर मेरी पकड़ और मजबूत हो गई। इसके बाद वह टहनी भी पहले से टूटकर अटकी टहनी में फँस गई। यह सब इस तरह से हुआ जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उस पेड़ की डाल पर मेरे लिए एक कृत्रिम घौंसला सा बना दिया था मैं जाकर न जाने किस तरह उन टूटी हुयी टहनियों और उस मोटी सी टहनी के बीच स्वतः ही उलझ गया। इस तरह पेड़ के नीचे नुकीले पत्थरों से मेरी हड्डी-पसलियाँ टूटने से बच गयी। हो सकता था कि मैं उस दिन यदि सिर के बल गिरा होता तो आज़ आपके साथ इस रहस्य को साझा करने के लिए जीवित न बचता। नीचे खड़े मेरे साथी मुझे हवा में उस टहनी के साथ कलाबाजी करते हुए एकटक देख रहे थे। आज भी हम सभी उस दिन की घटना को याद करके सहम जाते हैं।सभी यही सोचते हैं कि यह किसी अदृश्य शक्ति द्वारा मुझे दिया गया नया जीवन दान था अथवा एक इत्तफ़ाक। इस बात के रहस्य से पर्दा छँटना आज़ भी शेष है।

भूपेन्द्र डोंगरियाल
25/03/19
      


© भूपेन्द्र डोंगरियाल