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एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में होकर अन्त में है तथा असंभव में होकर संभव है।।241
अंगीनीश्रोत
अंग -स्तन, गान्ड, चूत, वीर्य,मल, योनि,नाभि,पेट, गर्दन, छाती,पीठ,कमर,होंठ,सम्मुखे,स्तन🪔

श्री कृष्ण के अनुसार वह कहते कि श्रृष्टि में कोई भी चीज व्यर्थ नहीं है क्योंकि हर चीज अपना अस्तित्व है क्योंकि जो हिन वो शून्य है और शून्य का श्रजनहार वह प्रथम वर्ग का त्रेतायुग का बाली नामक व्यक्ति हैं जिसका वध्द करके श्रीराम ने किया तथा उसी का कर्मफल...