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तन्हा बिखरा सा अनजान टूटा सा मुसाफिर ।
खोकर के तलाश में मंजिल की बस अब तो मुसाफिर सा हो गया हूं
खोकर के तलाश में मंजिल की बस अब तो मुसाफिर सा हो गया हूं
कब्र मे पड़ी लाश के ढेर धूल सा हो गया हूं
वजूद ढूंढते ढूंढते मै अपना
खुद के लिए ही अजनबी सा हो गया हूं
रूह की तलाश को जिस्मों की प्यास में बदल गए
मुसाफिर कुछ भूले बिसरे से हमको बस ऐसे ही बदनाम कर गए
बिन गुनाहों के गुनहगार सा हो गया हूं
इस पराई सी जिंदगी मे मै अब थोड़ा और मेहमान सा हो गया हूं
नजरें प्यासी लिए फिर रहा
दिल तड़पता मचल रहा
रूह बेचकर भी तो मुझे इस जहां मे आराम ना मिला
रास्ते कई बदले मुसाफिर संग राहें बदल गई
वो तन्हा अजनबी निकला मै जिसको बदलते बदलते खुद की मेरी सांसे बदल गई
कश्तियां किनारों पर थी और मै बेवक्त यूंही भटक आया
शौक लहरों से टकराने के लिए मै फिर दरिया मे उतार आया
वजूद ढूंढने निकला जो मै एक सफर मे
ना जाने कितने ही टुकड़ों मे खुद को बिखेर आया
मै मुसाफिर तन्हा होकर के अकेला फिर एक नई सी अनजान राह पर भटक निकल आया ।
© gun_sargam95