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साध्वी
रीमा और निशा दो बहनें हैं।रीमा बड़ी हैं निशा से रीमा की शादी हो गयी है वह अपने ससुराल मे रहती है।आज रीमा का देवर आया था निशा को लिवा जाने रीमा ने उसे बुलवाया था क्योंकि बहुत दिन हो गये थे वो निशा से मिली नही थी।निशा चली गयी अपनी दीदी से मिलने ।
रीमा निशा से मिलकर बहुत खुश हो गयी और कुछ दिन के लिए अपने पास ही निशा को रोक ली निशा अब वही रहने लगी पहले कुछ दिन फिर कुछ महीने अब तो डेढ़ साल हो गया निशा का भाई उसे लेने गया तो निशा नही आयी जब कि उसकी दीदी बोली कि चली जाओ बहुत समझाई भी पर निशा नही आयी वह वहाँ से आना ही नही चाहती थी।
रीमा दोपहर को सोकर उठी तो निशा के जीजा जी पुछे निशा कहाँ है
रीमा बोली सो रही होगी इतना कहकर वह चली गयी चाय बनाने कभीं निशा के जीजा जी को दिल का दौरा पड़ा और वो रीमा ,रीमा बुलाये वह आयी तबतक उनकी धड़कन बन्द हो गयी रीमा लगी रोने चिल्लाने तभी निशा हार पहने हुए आयी और रीमा का देवर पंकज भी साथ मे था दोनो मन्दिर मे शादी करके आये थे रीमा ये देखकर पागल सी हो गयी।
कुछ दिन बाद सब धीरे धीरे सामान्य होने लगा अब रीमा भी ठीक हो गयी थी वह अपने दो साल के बेटे को अपने से एक पल भी दुर ना करती थी
लेकिन निशा का व्यहार बदल गया था वह अपने को मालकिन अपनी दीदी को नौकर समझती थी खाना भी ठीक से नही देती थी अब तो धीरे?-धीरे बहुत दुर्व्यवहार करने लगी ।पंकज और निशा मिलकर रीमा को तरह -तरह से सताने लगे ।एक दिन निशा और पंकज आपस मे बात कर रहे थे तभी रीमा के कानो तक आवाज पहुँची तो वो सुनने लगी वो कह रहे थे कि अगर रीमा का बेटा विजय नही रहता तो कितना अच्छा होता वो लोग हर चीज का अकेले हकदार होते कोई हिस्सा बटाने वाला नही रहता।
पंकज बोला निशा क्यों फिकर करती हो विजय भी भइया के पास जा सकता है कहकर वो हँसने लगा निशा बोली सही कहे और वो भी हँसने लगी उसी समय कोई आया तो वो दोनो बरामदे में आ गये देखे तो बोले आइये वकील साहब कहिये कैसे आना हुआ तो वकील बोले विजय के नाम जो प्रापर्टी है उसी सिलसिले मे आया हुँ।पंकज बो ला विजय के नाम कौन सी जायदाद है तो वकील बोले सबकुछ ।।
विजय के दादा जी सबकुछ अपने पोते के नाम कर दिये हैं जब वह 21 साल का हो जायेगा तब वही इस घर का मालिक होगा।ये सुनकर पंकज और निशा दोनो जल उठे लेकिन रीमा डर गयी और वह बहाना बनाकर अपने बेटे को लेकर अपने मायके चली गयी।एक दिन रीमा अपने भाई से बात कर रही थी अचानक बोली भइया आप हमे एक वचन दो रीमा के भाई रीमा को बहुत मानते थे वो बिना कुछ सवाल किये बोले दे दिया वचन अब बोलो क्या कहना है तो रामा बोली भइया विजय को अपने पास रख लिजिए और जब ये 21 साल का हो जाये कभीं किसी के साथ भेजियेगा उससे पहले कभीं भी किसी के साथ नही भेजियेगा किसी के भी साथ नहीं आपको हमारी कसम रीमा के भाई बिना कुछ पुजे बोले ठीक है तुम जो चाहोगी वैसा ही होगा।
रीमा अपने बेटे को अपने भाई को सौपकर वह अपने ससुराल चली गयी
यहाँ पंकज और निशा दोनो उसपर बहुत जूल्म करने लगे वो हमेशा रोती रहती थी उसको समझ नही आता कि वह क्या करे फिर एकदिन वो बहुत हिम्मत करके निशा से बोली कि हमको बृन्दाबन भेज दो इतना सुनते ही निशा खुश हो गयी और दुसरे दिन ही रीमा को बृन्दाबन भेज दी।
निशा और पंकज मिलकर रीमा के मायके अफवाह फैला दिये कि रीमा किसी के साथ शादी करके चली गयी अब तो हर कोई यही कहता था कि रीमा किसी के साथ भाग गयी इस बात का विजय के ऊपर बहुत असर हुआ और वो अपनी माँ से नफरत करने लगा।
समये बीतता गया विजय 21 साल का हो गया सब जायदाद का मालिक हो गया निशा और पंकज आये विजय को अपने साथ ले गये निशा अपने बातों से विजय के मन मे ये भर दिया कि उसकी माँ किसी के साथ चली गयी विजय का ख्याल तक नही आया उसे और निशा पंकज दोनो विजय को सगे माँ -बाप से ज्यादा मानते हैं।आज विजय की शादी थी अच्छे से सम्पन्न हो गयी ।विजय के ससुर आकर पंकज से बोले कि लड़की की बिदायी कराकर सबसे पहले जाये दूल्हा-दूल्हन दोनो बृन्दावन दर्शन करके आये फिर अपनी गृहस्थी सुरू करें क्योंकि यही मन्नत है और ये पुरा करना जरूरी है।
पंकज निशा विजय और नीरू विजय की दूल्हन ,सब बृन्दावन चले गये वहाँ पूजापाठ किये दर्शन किये अब वापस लौटने लगे वो लोग अपनी गाड़ी की तरफ जा रहे थे कि तभी कोई निशा को पुकारा निशा पलटकर देखी तो पहचान गयी वह रीमा थी गेरुवा वस्त्र धारण किये माला पहने हुये और माथे पर चंदन का तिलक लगाये हुए उधर ही आ रही थी तभी निशा दौड़कर गयी और कुछ बात करने लगी ,रीमा बोली एक बार मेरे बेटे से मेरी पहचान करा दो तो निशी बोली कि हम लोग उसको बता दिये हैं कि तुम मर चुकी हो और इतना कहकर निशा आकर गाड़ी में बैठ गयी रीमा वहीं खड़ी शांत देखती रह गयी।
गाड़ी चल दी तो विजय पुछा मौसी कौन था वो तो निशा बोली वो एक साध्वी थी तम्हारा जीवन अच्छा हो इसी लिए तुम्हारी नजर उतारकर उसे दान देने गयी थी।।।।।।।