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"सुगंधा" अंतिम भाग-4 लेखक -मनी मिश्रा
...... हाँ "मां "रहबर ।
"उन्होने शादी कर ली, अपने जैसे इस शहर के नामचीन घराने में पली-बढ़ी एक खानदानी लड़की से । जिसका नाम रहबर था।
फिर एक दिन उनकी एक संतान हुई "सुगंधा"।
तब उसका नामकरण नहीं हुआ था ,क्योंकि उस दिन उसे इस दुनिया में आए हुए 1 दिन ही हुए थे, जब तुमने उसे अस्पताल से चुराकर डाल दिया था इस जिस्म के बाजार में, जिन्हें लोग हवेलियों के नाम से जानते हैं ।
रहबर रोती रही, बिलखती रही ,ढूंढती रही अपनी फूल को !तब तक ,जब तक कि उसने अपने प्राण त्याग नहीं दिए ।और यह पाप करने वाली तुम थी माँ।" लेकिन एक बदले के लिए,किसी को इस दलदल में फेंक देना उचित था क्या?
"एक बदले के लिए ,बेटी के जिस्म को बाप के सामने परोस देना उचित था क्या?
रिश्तो की इतनी बेकद्री क्यों मां? सुगंधा यह सब...