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काजू के मामा की दुल्हनिया
काशीपुर गांव में रहने वाला चार साल का काजू आज खुश बहुत है क्योंकि उसे शादी में जाना है। उसके मामा की शादी जो है। अपनी उम्र की यादों में ये शादी पहली शादी होगी और वैसे भी शादी का विशेष आकर्षण तो नई दुल्हन होती है। काजू बहुत खुश है। अपनी मां से बार_बार दुल्हन की बातें कर रहा है," मां दुल्हन कैसी दिखती है क्या उसने लाल साड़ी पहनी होगी। उसने घूंघट भी किया होगा। मां उसकी बातों पे मुस्कुराती और उसकी उत्सुकता को दूर करने की भरपूर कोशिश कर रही थी। मां दुल्हन क्या पालकी से आती है।" मां कहती है, "हां, तुम्हे भी उस पालकी पर बिठा दूंगी दुल्हन के साथ"। काजू शर्मा जाता है और मां से मुंह फूला कर कोने में जा के बैठ जाता है।

मां शादी की खरदारी खूब करती हैं। काजू के भी नए कपड़े खरीदे जाते हैं। अपने मामा की शादी में सहबाला भी काजू ही बनने वाला था।
गोल्डन रंग की शेरबानी मैचिंग वाले जूते और पगड़ी भी खरीदी जाती है काजू के लिए.... अब तो बस इंतजार शादी में जाने भर का ही था।

आज वो दिन आ ही गया जब शादी में जाने के लिए काजू अपने माता पिता के साथ घर से निकल रहा है। रेलगाड़ी का इंतजार मे स्टेशन पर बैठा है। कई बार वो अपनी मां से पूछ रहा है । ये रेलगाड़ी इतनी देर क्यों लगा रही है। तभी रेलगाड़ी के आते देख उसकी एक बेचैनी थोड़ी कम होती है। राह भर वह अपने माता पिता से शादियों में कैसी तैयारी होती है और उससे संबंधित ना जाने कितने सवाल पूछ रहा था। सफर की देरी काजू को बड़ा मायूस कर रही थी।

जैसे_तैसे करके काजू का सफर पूरा होता है। नानी के घर खूब आवभगत होती है। अब काजू की मां घर के रिश्तेदारों के बीच इतनी मगन हो जाती है कि काजू की उत्सुकता और उसके सवाल काजू के दिल में ही रह जाते हैं।
आखिरकार शादी का दिन आ ही जाता है।
काजू बारात में जाता है। दुल्हन को देखने की उत्सुकता के साथ.... उस जमाने की दुल्हनें इतना लंबा घूंघट करती थी कि उनका मुंह तो क्या उनके हाथों और पैरों की एक उंगली भी नहीं दिखती थी। बेचारा काजू जल्दी ही सो जाता है और सुबह कब होती है उसे पता ही नहीं चलता। विदाई हो चुकी थी। बाराती सारे निकल चुके थे। अब तो घर पहुंच कर ही दुल्हन को देखने की उसकी मनोकामना पूरी होने वाली थी।

मगर ये क्या दुल्हन तो अपना चेहरा दिखाती ही नहीं....घर की सारी औरते हंसी ठिठौली करती फिर मुंहदिखाई देती उसके बाद दुल्हन का चेहरा घूंघट उठा के देखती। काजू को लगा अब तो वो दुल्हन को नहीं देख पाएगा... उसके पास तो कुछ भी नहीं जो दुल्हन को मुंहदिखाई में दे सके.... काजू बहुत निराश हो जाता है...शाम हो चुकी है और अगले दिन उसे अपने घर के लिए लौटना था....तभी काजू अपना हाथ अपनी जेब में डालता ही है कि उसे कुछ याद आ जाता है....वो दुल्हन के पास बड़ी हिम्मत करके पहुंचता है और कहता है," मेरे पास पैसे नहीं हैं आपको देने के लिए" और अपनी मुट्ठी से निकाल कर मीठी गोलियां ( टॉफियां ) दुल्हन की तरफ बढ़ता है। दुल्हन उसका हाथ पकड़कर अपनी गोद में बिठाती है और उसे बहुत सारा प्यार करती है। काजू शरम से लाल हो जाता है। उसे लगता है इससे तो अच्छा था वो दुल्हन को देखता ही नहीं....




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