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                       💗 प्यार लफ्जों मे कहाँ ....अध्याय- 10
उपन्यास


                       💗 प्यार लफ्जों मे कहाँ .....💗


                                    अध्याय- 10


स्मिता की सोसाइटी आते ही स्मिता, ड्राइवर को पैसे देकर प्रणव के साथ घर आ जाती है|
स्मिता , प्रणव को सहारा देकर सोफे पर बैठालती है|
स्मिता - आप बैठिए, प्रणव जी| मै पानी लेकर आती हूं|
स्मिता, प्रणव के लिए पानी लाती है, और साथ ही फस्टिड किट भी|
स्मिता, प्रणव की चोटों को साफ करके पट्टी करने लगती है|
चोट प्रणव को थी, और दर्द स्मिता को हो रहा था| प्रणव के चोटों की दर्द की आह स्मिता के मुँह से निकल रही थी| प्रणव, स्मिता के आँख के आंसू देख पा रहा था| उसका दर्द समझ महसूस कर पा रहा था|

स्मिता - आपको कुछ हो जाता तो, प्रणवजी मेरा सब कुछ मुझसे छिन जाता| मेरा जीवन, मेरे जीवन के सारे रंग, सारी खुशी आप हो, प्रणव| आपकी चोटों को साफ करने में आपको दर्द नहीं हुआ, क्या !!!! पर मैं नहीं कर पा रही थी, ये|
प्रणव शांत रहता है|
स्मिता - आप वादा करिए, कभी मुझे छोड़कर नहीं जाएंगे कभी भी नहीं| मेरे पास ही रहेंगे| बस आप जल्दी से ठीक हो जाईए| आप बात करें या ना करें| मैं ही मेजर साहब से कह दूंगी, कि मैं आपसे प्यार करती हूं, और आपसे शादी करना चाहती हूं|

प्रणव , स्मिता...