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लव इफेक्ट पार्ट-टु

अचानक.. मोबाइल पर धीमी रिंगटोन बजीं, ज्योति ने बड़ी उत्सुकता से डिसप्ले पर देखा कि वो बड़ी हड़बड़ी में लाइब्रेरी के बाहर चलीं गयी, वो भी मुझे बताएं बग़ैर.., पर अचानक ज्योति का ऐसा आश्चर्यजनक वर्तन-व्यवहार या बोड़ी लेंग्वेज देखकर मैं वाकई में हक्का-बक्का रह गया और चिंता की लकीरें भी चेहरे पर दस्तक दें चुकी थी । क्योंकि पहले कभी ऐसी घटना घटित हुई नहीं थी इसलिए ऐसा सोचने के लिए मजबूर था ।

किन्तु ताज़्जुब की बात यह थी कि ऐसी नाज़ुक स्थिति में भी ज्योति का ख्याल दिलों-ओ-दिमाग़ पर इश्क़-ए-जुनून बनकर छा गया था । लेकिन अचानक उसका नज़र अंदाज़ करके जानें का तौर-तरीकों ने मुझे वाकई में हिलाकर रख दिया था । फिर सोचा कि शायद कोई फैमिली का मेम्बर बिमार होगा अन्यथा सिरीयस कंडिशन में होगा तभी तो वो सुध-बुध भूलकर भागी-भागी से गयी हैं वर्ना वो मुझे बताएं बग़ैर कभी इस तरह चलीं नहीं जाती, इतना तो मुझे उस पर विश्वास था । किन्तु आज मुझे क्या हो गया हैं जिसके बारे में कुछ ज्यादा ही सोचने लगा हूं, पर हकीकत कारण क्या था ? वो किसीको पता नहीं था, फिर भी कोई खास वजह अवश्य रहीं होगी उसे विवश करने के लिए । लेकिन मैं पागल केवल कल्पना के शहर में बेबुनियाद भटक रहा था वो भी क़िस्मत को जोर-शोर से कोसता हुआ । फिर भी उम्मीदों की श्वासों ने कही से कहीं भीतर से मुझे जिंदा रखा था, प्यार को हरगिज़ तलाशने के लिए ।

क्योंकि.., जब आप किसी से बेइंतहा मोहब्बत करते हैं तब उसके लिए फिक्रमंद होना स्वाभाविक है। क्योंकि वो आपकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन जाती हैं, उसके अच्छे ख़्याल और मीठी बातें हमेशा मन और हृदय को प्रभावित करती है ।

अब लाइब्रेरी से सीधा होस्टेल वापस लौट आया, वो भी कोलेज का एक लेक्चर छोड़कर, क्योंकि थोड़ा मूड़ ओफ हो गया था । लेकिन भीतर उठें सवालों के बंवडर ने तरह-तरह तर्क-वितर्क से स्वयं को परेशान करके रख दिया था और ऊपर से भीतरी जिज्ञासा ने तंग-वंग करना जारी रखा था, वहीं हल्की-फुल्की सांझ के किरणें मेरी आंखों को उम्मीद की रोशनी प्रदान करने के लिए आतुर हो वैसा धुंधला सा प्रतीत हो रहा था । स्वयं को प्यार की विश्वसनीयता पर चलने के लिए प्रेरित करने के लिए हृदय की तेज़ धड़कन पुकारा रहीं थी ऐसा ओजस्वी आभास भीतर से महसूस हो रहा था ।

तभी तरुण नाम का फ्रेंड जोर से कहता है कि
" शेखर जल्दी उपर आना खाना तैयार हो गया हैं , वर्ना ऐसे बेसुध बैठा रहेगा तो खाना शीघ्र खत्म हो जाएंगा, क्योंकि यहां कई भूख्खड लोग भी बेटिंग करने आ गएं है, वो सबकुछ चौपट कर जायेंगे और ड़कार भी नहीं करेंगे, भला ये ठहरें कुंभकर्ण के भाई... कहां आगे पीछे देखते हैं ।"

ऐसा मज़ेदार हास्य-व्यंग्य सुनकर कहा-
" हां.. तरुण जरुर आता हूं, जरा बाथरूम में हाथ-मुंह धोकर ', फिर क्या था में सीधा बाथरूम में चला गया वहां करीब दस मिनट हाथ-मुंह बार-बार धोता रहा, वो भी गहरी सोच में डूबकर क्योंकि में क्या करने आया था वो बात वाकई में भूल गया था, तभी अचानक दिमाग़ की बत्ती जली, फटाफट खानें के लिए ऊपर रसोई के रूम और भागता गया लेकिन काफ़ी देर हो चुकी थीं, सब छात्र खा चुके थें, कुछ आधा चावल बचें थें, वो खाकर स्वयं की भूख को तृप्त कर किया, लेकिन प्यार की अभिलाषा ने मुझे विचलित या अतृप्त बना दिया था ।

अब अंधेरा धीरे-धीरे आंखों पर ढ़लने लगा था, तभी मैंने सोचा कि चलो ज्योति को फोन से मेसेज भेजकर हालचाल पूछ लेता हूं, ऐसा स्वयं से कहकर मैंने मेसेज लिखा " हेल्लो.. डियर ज्योति... सबकुछ तो ठिक है या नहीं मैं थोड़ा यहां परेशान हूं तुम्हारे अचानक इस तरह मुझे छोड़कर जाने से, खैर.. कोई बात नहीं कोई काम अवश्य रहा होगा । वैसे बाय द वे कल मिलते हैं ।" ऐसा कहकर ज्योति को मेसेज भेज दिया क्योंकि मैं लड़कियों से फोन पर बात करने पर अक्सर अनकंफर्टेबल फिल करता था क्योंकि कुछ ग़लत कह दिया तो सारी बनाई बात बिगड़ जाएंगी । इससे अच्छा तो ख़ामोशी ही बेहतर है, वर्ना जुबानी शब्दों से प्यार रूठ जाएगा। वहीं मेसेज का रिप्लाय पढ़ने के लिए मैं बार-बार मोबाइल को देख रहा था, काश.. कोई पोजिटिव रिपोन्स फटाफट आ जाएं इस होप में भोंदू सा बनकर इंतजार की माला आधी रात जपता रहा पर कोई रिपोन्स आया नहीं, इस बात से दुःखी होकर खुद पर हंसू या रोऊं मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था । जैसे मैं कोई प्रेमी योद्धा बनकर सूखे रेगिस्तान प्यार ढूंढने के लिए व्यर्थ प्रयास कर रहा हूं ऐसा आभास भीतर से फड़फड़ाने लगा था और स्वयं को बेवजह धिक्कारा लगा था ।

अगली सुबह फिर से कोलेज चला गया, लेकिन लेक्चर ऐटेन करने के बजाय उसे आसपास ढूंढने लगा, काश.. वो मिल जाएं तो कुछ बात दिल की आगे बढ़ें । इस दौरान मोबाइल पर मेसेज आने की आवाज़ आयी, मैंने तुरंत ज्योति का मेसेज ओपन करके पढ़ने लगा " मैं जानती हूं कि तुम मेरी परवाह करते हो, मुझे इस बात की बेहद खुशी हैं कि तुम मेरे बारे में इतना अच्छा सोचते हो, लेकिन जरा भी टेंशन लेने की ज़रूरत नहीं हैं , मैं सच में सकुशल हूं, और तुम्हें पक्का लाइब्रेरी मिलती हूं ।"

ऐसा भावनात्मक मेसेज पढ़कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, जैसे लव नाम के कुत्ते ने मुझे काट लिया हो वैसा बावरा बनकर, होशोहवास भूलकर, लाइब्रेरी की और पागल आशिक कि तरह दौड़ता गया । लेकिन वहां पहुंच कर देखा तो ज्योति मौजूद नहीं थीं, फिर क्या था सारी खुशी हवा-हवाई हो गयीं, फिर सोचा चलों कुछ इंतज़ार करते हैं कहीं वो आ जाय तो ठिक है वर्ना मेरी हालात " धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का " जैसी बनकर रह जाएंगी । इससे अच्छा हैं कि मुझे प्यार-व्यार के चक्कर में पड़ना ही नहीं चाहिए था और फिजुल में दिल के जज्बातों में भी बहकना नहीं चाहिए था, केवल सिंघल बंदा बनकर अच्छी तरह पढ़ाई लिखाई पर ध्यान केन्द्रित करता तो आज ऐसी नोब़त ही नहीं आती और न हालातों के आगे घुटने टेकने पड़ते । लेकिन क्या करूं मैं भी एक जज़्बाती इंसान हूं, मेरे अंदर भी एक नादान दिल धड़कता है, वो भी खूबसूरत प्यारा की तलाश करता है, वो भी आंखों से आंख मिलाकर घंटे भर बातें करना चाहता, धड़कनों को करीब से महसूस करना चाहता, हाथों में हाथ डालकर उन्मुक्त गगन में उड़ना चाहता है, पदचिन्हों पर पग रखकर हर सफ़र में साथ चलना चाहता है । लेकिन क्या यह सब काल्पनिक बातें मेरी जिंदगी में हक़ीक़त में मुमकिन होगी या भ्रम के मायाजाल में उलझकर नामुमकिन हो जाएंगी, वो मुझे बिल्कुल पता नहीं था । क्योंकि मैंने परिणाम से ज्यादा प्यार को महत्व दिया था ।

अब मैं प्यार के नाम से कुछ अधिक ही डिस्टर्ब हो गया था । रात के घनघोर पहर में कभी-कभी निशाचर पक्षी की भांति बेवजह गहन, चिंतन शील विचारों में खोया रहता था, फिर भी नीरव शांति का भाव भीतर निष्ठुर बनकर चुभता रहा , मन का अकेलापन और हृदय का खालीपन चुप्पी साधकर प्रतिक्षण मेरी इन्तेहा लेने पर तुला था । इस असमंजस से भरी परिस्थिति में भला करता तो क्या करता उल्टा उसका प्रभाव मुझ पर हावी होने लगा था । तरह-तरह उधेड़-बुन ख्यालों ने मुझे परेशान करके रख दिया था । ऐसी हालात में आधी रात उसकी यादों में बीती और आधी रात करवटें बदलने में गुजर गयी ।

रोज़मर्रा की तरह मायूस सी शक्ल लेकर फिर कोलेज चला गया, जैसे मैं गेट के अंदर दाखिल...