"भारत की नारी"
उतार दिया है, नकाब हवस का !
दुख है!स्वरूप कविताओं को कहना!
ख़ाक सलाह मशवरा भी लेलूं ..
जमीन पर नाक भी रगड़ लूँ
पर तुम्हारी खूबसूरती का क्या कहना..!
तुम "भारत की नारी के वेश में ही रहना..!
पिरोता हूं कविताओं को तुम में!.
मेरी कविताएं बहती है ख्वाबों के समंदर पर
एक बवंडर पर झुकी नजर उसे भाव लिखूंगा..
तुम्हें एक श्रृंगार से निहार लूंगा..
जुल्फे तेरी चेहरा! चेहरे पर बिंदी
तुम हो हिंद की हिंदी
और सलवट के लहंगे का क्या कहना!..
तुम भारत की नारी के वेश में ही रहना!..
© दितिकराज
दुख है!स्वरूप कविताओं को कहना!
ख़ाक सलाह मशवरा भी लेलूं ..
जमीन पर नाक भी रगड़ लूँ
पर तुम्हारी खूबसूरती का क्या कहना..!
तुम "भारत की नारी के वेश में ही रहना..!
पिरोता हूं कविताओं को तुम में!.
मेरी कविताएं बहती है ख्वाबों के समंदर पर
एक बवंडर पर झुकी नजर उसे भाव लिखूंगा..
तुम्हें एक श्रृंगार से निहार लूंगा..
जुल्फे तेरी चेहरा! चेहरे पर बिंदी
तुम हो हिंद की हिंदी
और सलवट के लहंगे का क्या कहना!..
तुम भारत की नारी के वेश में ही रहना!..
© दितिकराज