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विश्वास
जिस भावना पर हो "विश्व की आस" उन मन,मस्तिष्क की भावना को हम "विश्वास" कह सकते है। विश्वास करना, विश्वास न करना या अविश्वास हमारे जीवन को चलायमान करने के लिए नितांत आवश्यक है। "विश्वास करना" या "अविश्वास" और "विश्वास न करना" सभी "विश्वास" के पहलू है। जीवन इन तीनो भावनाओं को साथ लेकर चलता है। जीवन के किसी भी अवस्था मे विश्वास की इन तीनो पहलुओं में से किसी न किसी एक की तीव्रता ज्यादा होती है बाकी अन्य पहलू नगण्य रहते है या फिर यह विश्वास के पहलू उसी अवस्था मे पल पल बदलते रहते है।
विश्वास करना हमे ज़माने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का सामर्थ देता है जब हम सड़क पर चलते है तो अन्य राहगीर या वाहन चालकों पर हमें विश्वास रखना अत्यंत जरूरी है कि सभी सड़क पर अपने पूर्व निर्धारित स्थान पर चलेंगे,सड़क पर हमसे आगे या पीछे का वाहन अपने वेग को स्थिर रखेगा, आपने दाएं और बाएं का वाहन आपके वाहन से उपयुक्त दूरी बनाए रखेगा इस प्रकार आप विश्वास करके अपने कार्य क्षेत्र पर सुरक्षित जाते है और घर लौट आते है। कार्यक्षेत्र में भी आपके शीर्ष आप पर विश्वास कर कार्य सौपते है और आप अपने अधीनस्थों को उस कार्य के विभिन्न दायित्व सौप कर उनके दायित्व को निर्धारित समय पर निर्धारित मानकों के अनुरूप कार्य पूर्ण कर देने का विश्वास रखते है।
अगर आप अधीनस्थों विश्वास नही करेंगे तो बार बार उनके कार्य की प्रगति की जांच करते रहेंगे और स्वयं परेशान होकर अधीनस्थों को भी परेशान करेंगे।अतः कार्य की सुगमता के लिए विश्वास करना बहुत जरूरी है।

"विश्वास न करना" यह आपके जीवन के पूर्व अनुभव पर आधारित होता है जैसे कि कहावत है न "दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है।" इसका अर्थ यह नही की वह दूध के जैसी सफेद द्रव से दूरी बनाता है बल्कि वह उस पर विश्वास न करते हुए उसे अपने विश्वास की कसौटी पर तौलता है और फिर उस पर विश्वास करते हुए ग्रहण करता है। इस प्रकार वह प्रथम दृष्टया में विश्वास न होने पर भी उस पदार्थ का परीक्षण व अपने विश्वास पर खरा उतरने के पश्यात ही ग्रहण करता है।

"अविश्वास" हमारी मानसिक या शारीरिक अवस्था पर निर्भर करता है जीवन के विभिन्न अच्छे या बुरे अनुभव से गुजरते हुए हमारे मन मस्तिष्क में एक धरना बन जाती है और फिर हम अपने पूर्व अनुभव से सीख लेते हुए अपनी धारण को किसी भी परिस्तिथि में बदलना नही चाहते है यही अविश्वास की भावना के जन्म का मूल कारण है।अविश्वास करना स्वयं के लिए अपितु दूसरों के लिए भी दुखदायी होता है।इस अविश्वास का दूरगामी परिणाम वह व्यक्ति सब से दूर होता जाता है और सबसे दूर होकर भी उसके अविश्वास करने की भावना और भी प्रबल होती जाती है।

आज के इस प्रतिद्वंदी युग मे विश्वास की एक नई परिभाषा प्रचलित मानी जाती है "जिस पर हो विष का वास"उसे ही विश्वास समझने लगते है। अब तो किसी पर विश्वास करना नुकसानदायक समझा जाता है। या जो लोगों पर विश्वास करता हो उसे क्या समझा जाता है आप सभी जानते ही है, इसलिये आज हम साथ होते हुए बार बार सामने वाले व्यक्ति को अपने विश्वास की भावना दिखाते है पर साथ ही साथ उस पर विश्वास नही करते और उसके कृत्यों पर सदा ही अविश्वास करते है।
संजीव बल्लाल २/३/२०२४
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