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श्रावणी

एक अर्से पहले की बात है। बरसात की पानी का ऐसा कहर ना किसी ने देखा था ना सोचा था। दिन का वक़्त था, पर अंधेरा घना था। घनघोर काले बादल आसमान पर मंडरा रहे थे। उसकी गरिमा देख रखा नहीं कि, बारिश ज्यादा होगी। सरोज अपने मामा के यहाँ गया हुआ था, एरसमा गाँव। कुछ दिन पहले ही तो उसके मामी ने उसे एक छोटी बहन उपहार में दी थी। श्रावण का महीना और बरसात घनघोर होने लगा। शाम का सूरज डूबा तो दिखा नहीँ। शाम को नामकरण संस्कार का पूजन प्रक्रिया सब संपन्न हो गया। बहुत चाव से अपने छोटी बहन का नाम उसने "श्रावणी" रखा था।

सब घरवाले बहुत खुश थे। रात का समारोह पश्चात, जो रिश्तेदार थे और आस-पडोस के, सब चले गए। हाँ दिक्कत तो बहुत हो रहा था, क्यों कि पानी का स्तर बढ़ रहा था। घर के चौखट पर जो रास्ते की जमीन से चार या पाँच सीढ़ी के ऊपर था, वहाँ तक पानी भर रहा था। जाने वाले तो चले गए, पर बहुत कठिनाइयोँ से जूझते हुए गए थे।

सबके जाने...