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-एक कहानी है पर कहानी जैसी नहीं..


अचानक खुश होने के बाद अपने दाएं हाथ को देखते हुए सवाल करता हूं, की यह ख़ुशी कब तक मेरे वर्तमान में बनी रहेगी? मानों सारी ख़ुशी हाथों में छुपी हो और यह सवाल उसके लिए है।
जब लगता है अधिक खुश हूूॅ तब हाथो की लकीरों को उंगलियों से छूने लगता हूॅ। इस वक्त नई ख़ुशी के लिए हाथ में एक जगह बना रहा होता हूॅ। अचानक आई नई ख़ुशी बहुत जगह घेर लेती है। जब हाथों में ख़ुशी शामिल नहीं होती तो हाथ खुद कह देता, अब और जगह नहीं बची इन लकीरों में। कल का इंतजार कर सकते हो? समय से पहले अपने ख़ुशी को कभी जाने को नहीं कहता। मेरा जवाब हमेशा की तरह ना था। थोड़ी जगह बनने की दृष्टी से अपने बाएं हाथ को देखा, जिसमें केवल दुःख की लकीरें नजर आती है। यह राज मुझे भी बहुत समय बाद मालूम हुआ।
जब एक दिन अचानक हाथों को देखा, सारे गहरे दुःखो का पहला शब्द हाथों की लकीरों में बना हुआ था। यकीन नहीं हुआ फिर आंख बंद कर नए शब्द की कल्पना करने लगा। तब आंंखे खोलकर देखा उस शब्द की लकीन हाथ में बनी हुई थी। बचपन से मुझे हाथों में अंग्रेजी का ए शब्द नजर आता था और आज भी। इसलिए बांए हाथ का नाम दुख रख दिया है।

कुछ दुखों को मैंने उम्र कैद की सजा दे दी है जो हमेशा यथार्त की स्थिति में बने रहते है। शायद इसे कभी मुक्त करना नहीं चाहा मैंने। कई दुखों को माफ़ कर देने से हाथों में काफी जगह खाली हो चुकी थी। ख़ुशी को यहां रखना सही होगा? खुद से सवाल था। क्या वह रहेगी? उससे ही पूछना होगा। दाएं हाथ की ओर देखकर कहा, क्या आप वहां रह सकते है? मेरा कहना बिलकुल वैसे ही था जब कमरे में जगह नहीं होने मेहमान को बुरा न लगे ऐसे भाव से हम कहते है। लेकिन मेहमान कभी न नही कहते, और ख़ुशी ने भी अपनी जगह बाए हाथ में बना लीं। जब दांए हाथ की ओर देखने लगा तो अचानक उसने कहा, क्या तुम अब भी इस हाथ को दुःख की दृष्टी से देखोगे? और मुझे सुनाई दिया क्या तुम सभी दुःख को यहां से मुक्त कर दोगे? मैंने कहा, कभी नहीं। फिर उसने कहा, हाथों के सुख और दुःख हम एक हो जाते है? और मुझे सुनाई दिया मैं दुखों से दोस्ती करना चाहती हूँ? जवाब में, हाथों में बनी शब्द की लकीरों पर उंगलियां फेरने लगा मनो ख़ुशी को अपने दुःख से परिचय करा रहा हूॅ। तभी उसने कहा यह दुःख काफी पुराना हो चूका है। जवाब था, यह काफी बुजूर्ग हो चुके है। तुम्हारे जाने के बाद यह जगह दुःख जैसे नही रहेगी। उसने कहा, क्या तुम अभी से मेरे मौजूदगी की लकीर देख रहे हो? मेरा जवाब हां था। फिर उसने कहां, तो एक काम करो मुझे अपनी दुःख में शामिल कर लो! मुझे सुनाई दिया मैं अब जाना चाहती हूं। और जल्दीबाजी में ना कहते हुए। खाना बनाने में व्यस्त हो गया।

रात में सोने से पहले हाथों में शब्द की लकीरों को एक बार देखा फिर मुस्कुराते हुए लाइट बंद की। अंतिम बार फोन देखने की इच्छा हुई। फोन में उस पहले शब्द का मैसेज आया था। जिसमे लिखा था तुम कैसे हो? देखकर बेहद ख़ुशी हुई। झट से उठकर बैठ गया। तेजी से टाईप किया मैं ठीक हूँ पर उसे एक मिनट के देरी में भेजा। इनदिनों अपना ध्यान रखते हो न ? उसने कहा और मैंने पढ़ा अपने ख़ुशी के बारे में नहीं बताओगे? जवाब में छोटा सा हां शब्द लिखा। फिर दूसरी लाइन से लिखा शुरू किया, मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है। उसने पढ़ा होगा, मैं नए संबध के साथ खुश रहें लगा हूॅ, जिसे मैं बहुत पसंद करता हूॅ। उसने कहा कब से? मैंने कहा, खाना बनाने की ख़ुशी ने मुझे पूरी तरह बदल दिया है। यही मेरी वर्तमान खूशी है। इस बार उसने सही पढ़ते हुए कहा, खाने में क्या बना लेते हो? मैंने कहा, जीवन में बनाने वाली सारी प्रक्रिया मुझे आकर्षित करती है। उसमे अकेले रहते हुई खाना बनाना भी शामिल है। अकेला शब्द पढ़कर उसने लिखा होगा, तुम अकेले रहना कब सीखे? मैंने पढ़ा तुम गोभी बनाना कब सीखे? इसका जवाब देते वक्त बेहद खुश था और कहां कुछ दिन पहले सिखा है। मैसेज भेजने के पहले गोभी की ओर देखा और फ्लाइंग किस देते हुए मैसेज भेज दिया। उसने पढ़ा मैं अकेले खुश हूं। जवाब में उसने लिखा क्या तुम अपने अकेले पन में मुझे शामिल कर सकते हो? और मैंने पढ़ा क्या तुम मुझे खाना बनाना सिखा सकते हो? मैंने जवाब में कहा, यह ख़ुशी मुझे अकेले में रहने से मिलीं है शायद तुमको भी खाना बनना चाहिए। आगे उसने कहा खाने में स्वाद कैसे आता है? लंबा जवाब देते हुए कहा, मेरे खाना बनाने की ख़ुशी से इनदिनों मेरे दुःख भी काफी खुश है। मैंने घंटो बैठकर खाना नही बनता, दुखों के लिए एक सुख बनाता हूॅ। जिसके लिए कढाई लेता हूं। उसके खाला हिस्सा में मुझे अपना जीवन नजर आता है। संबध के रूप में जीरा, मिर्स फिर प्याज डालता हूं। जो जीवन में एक कहानी की तरह सब्जी के रूप प्रवेश करती है। मेरे लिए गोभी अकेलापन है जिसे अपनी हर सब्जी में डालना पंसद करता वो भी अंतिम में ताकि सभी को अपने में शामिल कर ले। नामक और मसाले कहानी में को नया रूप देते। यह ख़ुशी लंबे वक्त तक साथ रहती जब उसमें पानी डालता तो लगता कहानी ख़त्म हो चुकी है। थोड़ी देर कहांनी को जगह बनाने अकेले छोड़ देता हूं। बन जाने पर वह आवाज के रूप में सुगंध के धुए बाहर निकलने लगते है। अंतिम बार ढ़क्कन निकालकर कहानी को देखता हूॅ। और उसका नाम खुशी लिखता हूॅ। यह सब्जी में अपने सारे दुखों को परोसता हूॅ वे खुश है। इसकी लकीरे अब दोनों हाथों में दिखने लगी है, जिसे पहले देखकर चुमता हूॅ, फिर आपस में मिला देता हूॅ