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प्रेम: एक परिकल्पना ( Love :Very Lovely )
सिर्फ स्व-हित ही न अन्तर्निहित हो,
उपकार की वो भावना प्रेम है,
प्रेम नहीं है, महज दो लोगों ( प्रेमी-प्रेमिका या युगल कोई)
की बपौती,
ये तो स्वतः ही व्यक्तित्व से सम्बद्ध है,
ये अन्तरमण्डल से मुखमण्डल तक,
हो उठे , स्वतः ही सुशोभित , इसमें है वो नैसर्गिक सौंदर्य समाहित,
प्रेम ही वह कारक है, जो समष्टि की मूल धरा है,
प्रेम से ही सम्बद्घ होते, रिश्ते नाते दोस्त,
नाम(रिश्ते का) तो वस्त्र मात्र ,
सबके अंदर विद्यमान है केवल प्रेम ही गात,
गिनने बैठें तो रिश्ते एक नहीं, तमाम हैं
लेकिन स्नेह बिना ,हर रिश्ते का नाम तमाम है,
प्रेम नहीं है जिससे भी, जिसमें भी ,
उनके पास रहती है एक Up-to-dated
List जिसमें लिखी जाती हैं,
शिकायतें, शिकायतें महज शिकायतें ही,

नहीं मनुष्य वह धरा पर है,
जिससे हो न गलतियां ,
नहीं मनुष्य वो धरा पर जिसमें न हो बदलाव ससमय,

बस अभाव रहता है हम सब में ,
समरसता की समझदारी का ,
नहीं तो जो लोग, एक दूसरे को खूब चाहते हैं, मानतें हैं, प्यार करतें हैं,
क्या उनसे कोई गलती नहीं होती,
या वो आपस में झगड़ते नहीं,
होतें हैं खूब, मैं तो कहूँगा रोज,
उल्टा इसमें तो मजा आता है,
अबकी बार तुम मनाना, याद करो इससे पहले मैंने तुम्हें कितने अच्छे से मनाया था,

प्रेम सर्वश्रेष्ठ है, ये आपको स्वतन्त्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है,
जब आप प्रेम अधीन होतें हैं,
तब आपको गलतियाँ नहीं,
उसकी अहमियत समझ में आती है,
आपको एक दूसरे के सामने दिखावा या झूठ बोलने की जरूरत भी नहीं पड़ती,
इस प्रकार आप अंदर और बाहर दोनों तरह से खुद के प्रति ईमानदार बनें रहतें हैं।
प्रेम के प्रति अपनी धारणा सकारात्मक रखिये, अपने स्तर से ,अपने भावों को समझिए,
लोगों से ठप्पा मत लगवाइए, प्रेम बहुत अच्छी चीज है इसके बहुत सारे लाभ हैं , please sign या अंगूठा लगा दीजिये।

यथार्थ प्रेम और प्रेम की यथार्थता ये दोनों ही दिखावे से बहुत दूर ,.......,टिकतें हैं।
दिखावे से आप लोगों को क्षणिक प्रभावित कर पाएंगे वो भी सब को नहीं,
प्रेम प्रभावित करने जैसी तुच्छ मानसिकता से बहुत बहुत बहुत ऊपर है।

© @मृदुलकुमार
#मृदुलकुमार_love