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प्रेम :-भाग-१, आकर्षण का मायाजाल
#प्रेम भाग -१
आकर्षण का मायाजाल
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क्रमश: से आगे...

आपका उतर तो यही होगा नहीं ....स्वयं से प्रेम कैसे कर सकते है ...और ठाकुर जी आप तो बिल्कुल गलत ही प्रश्न पुछ रहे है।
मैने तो प्रश्न सही पुछा है ...पर विचार करने की आवश्यकता है....समझने की जरूरत है।
परंतु बिडम्बना तो यही है कि व्यक्ति स्वयं को नहीं समझता है ...स्वयं के अवगुणों व दोषों को नहीं देखता है...वह तो सदैव दूसरों के अंदर ही अवगुण व दोष और कमियां ढूंढता रहता है।
प्रेम अर्थात प्यार तो इन सबसे अलग ही है....जो किसी भी में दोष व अवगुण नहीं देखता है ....मात्र करूणा ही देखता है....हृदय की पवित्रता को देखता है।
जिस क्षण तुम स्वयं से प्यार करने लगोगे तो मायाजाल छुट जायेगा ....अहं टूट जायेगा .....और तुम्हें स्वयं में ही दूसरों के...